श्रीभगवानुबाच, भूय एवं महाबाहो श्रृणु में परमं वचः ।। यत्तेअ्हं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया ।। गीता : 10.1 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
श्री भगवान बोले, हे महाबाहो! फिर भी मेरे परम रहस्य और प्रभावयुक्त वचन को सुन, जिसे मैं तुझ अतिशय प्रेम रखने वाले के लिये हित की इच्छा से कहूँगा.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
भगवान ब्रहमाण्ड रूप शरीर में दृश्य और अदृश्यवलौकित समस्त सूक्ष्मातिसूक्ष्म और अति वृहत पदार्थों एवं शक्ति तरंगों के आपसी रूपांतरण की संतुलित क्रिया प्रतिक्रिया के तहत निरंतरता से होती रहती है. मनभावन, लुभावन तांडव करते स्वयं अध्यक्ष बनें रहने वाला भगवान, परब्रहम परमात्मा नाग के माथे पर नृत्य करते मुरली बजाने वाला सम्पूर्ण शरीर मे फुफकार काटते नाग का आभूषण, हाथ में डमडमाता डमरू और अल्फ़ा-गामा-बीटा-रे की प्रलंयकारी चहूदिश, शक्ति तरंगों को निस्तारित करने वाला हाथ के घूमते त्रिशूल के साथ तांडव करते शिव और क्षीर सागर में शेष नाग की सज्जा पर महालक्ष्मी के साथ विराजमान महाविष्णु भगवान हैं. ये भगवान महायोद्धा महाविवेकी ज्ञानी और परमभक्त निरंतर अपने शरीर से निस्तारित होती रहती शक्ति तरंगो श्रीकृष्ण को समर्पित कर प्रवाहित करने वाले भगवान से अतिशय प्रेम रखने वाले अर्जुन को भगवान कहते हैं कि तुम्हें तुम्हारे हित शांति, शाक्ति का परम रहस्य अतिमौलिक ज्ञान दूँगा.
गंगा कहती
है :
शरीर को प्रचंड तप से तपाते पदार्थ और शक्ति की न्यूनतम अन्तःप्रवाह से कोशिका की जीवंतता का निर्वहन करते एकाग्रता से समस्त शक्ति प्रवाह को महाविष्णु के चरण कमल में सालों-सालों तक न्यौछावर कर महाराज भागीरथ ने अपने समस्त वैभव को त्यागकर हिमवन की अति कष्टमय कन्द्रा में तपस्या करके मुझे विष्णु से भूलोक पर उतरने की आज्ञा ली तदुपरांत उन्हें पुनः शिव का कठोर तप कर शिव के मस्तक पर उतारने की अनुमति प्राप्त कर मैं भागीरथी रूप धारिणी सर्वोच्च सतही एवं भूजल स्थैतिक गतिज जल रासायनिक-गुण ऊर्जाओं के अतिरिक्त जन्म-जन्म के समस्त पापों से मुक्ति दिलाने वाली विश्व के सबसे समतल 3-4
कि.मी. गहराई की एलूवियल महान ऊपजाऊ मिट्टी रखने वाली अमृत औषधि स्वरूपा नहीं सड़ने वाली जल प्रवाहित करने वाली विभिन्न पुष्पों फलों से आक्षादित अपने मनोहर आँचल से वातावरण को संतुलित रखने वाली और अनंत जल थल जीवों और 50 करोड़ मानव के जीवन संचालन के योगक्षेम वहन करने वाली देवमाता हूँ. राजा भागीरथ के बाद राजा हरिश्चन्द्र राजा-राम भगवान श्रीकृष्ण और असंख्य साधकों के भक्ति भाव से अभी तक मैं आनंद-विभोर रहते हुए तुम्हारे कल्याण की बात कहूँगी.