यथा धर्ममधर्मं च कार्यं चाकार्यमेव च ।अयथावत्प्रजानाति बुद्धिः सा पार्थ राजसी ।। गीता : 18.31 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
हे पार्थ ! मनुष्य जिस बुद्धि के द्वारा धर्म और अधर्म को तथा कर्तव्य और
अकर्तव्य को भी यथार्थ नहीं जानता, वह बुद्धि राजसी
है :
श्लोक की वैज्ञानिकता :
धर्म, कम्पन, धड़कन व शक्तिक्षय को न्यून करते ग्राउण्ड-स्टेट ऑफ़ वाईब्रेशन में
लाने के ज्ञान को कहते हैं और इनका नहीं होना अर्थात शक्ति-क्षय बढ़ाते जाने का ज्ञान
अधर्म है. धर्म की ओर बढ़ना ही केंद्र की ओर शांति प्राप्ति
की दिशानुमुख होना है, यही है ब्रह्म की ओर दिशानुमुख होने का ज्ञान. यदि यह नहीं
तो केंद्र के विपरित दिशा में आउटरमोस्ट ओर्बिटल को पार करते दुःखों के सागर, क्रिया-प्रतिक्रिया
के अथाह संसार में प्रवेश करने के अकर्तव्य ज्ञान को नहीं समझ पाना ही ‘राजसी ज्ञान’ है.
भारत के प्रधानमंत्री, नरेन्द्र मोदी क्या हैं ?
(39) सब का साथ-सबका विकास ब्रह्म ज्ञान को अवधारित करने वाले भारत के प्रधानमंत्री
श्री नरेन्द्र मोदी केंद्रस्थ रहते ब्रह्म-प्रतिष्ठित पंडित हैं.
गीता (10.20) में भगवान
श्रीकृष्ण कहते हैं :
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः । अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च।।
हे अर्जुन ! मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबकी आत्मा हूँ तथा सम्पूर्ण
भूतों का आदि, मध्य और अन्त भी मैं ही हूँ.
इस ब्रह्म वाक्य का रूपांतरण है ‘सब का साथ सबका
विकास’. इसका प्रैक्टिकल रूप है, देश के गांवों-गांवों
के घर-घर में शौचालय-गैस व चूल्हा, बिजली और गली-गली में पक्की सड़क. इनके अतिरिक्त
हर-वर्ग के गरीबों को पक्के मकान की योजनाएं और हरेक गरीब-दुःखी लोगों को मुफ्त
गेहूं, चावल व मिट्टी का तेल. समाज के हर सीनियर सीटिजन को हरेक माह पेन्शन आदि सुविधाओं
को उपलब्ध कराने वाले भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ‘सबका साथ और
सबका विकास’ सिद्धांत का प्रक्टिक्ल
होना ही 2019 के पार्लियामेंट के इलेक्शन
में भारी-मतों से भाजपा को विजयी होने का कारण है. यही है प्रधानमंत्री का
केन्द्रस्थ-ब्रह्मस्थ होते ‘सबका साथ सबका विकास’ फार्मूला को देशभर में लागू करना. यही है ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति सः पंडित’ प्रधानमंत्री को ‘पंडित’ होना.
गंगा कहती है :
तुम अपने जैसा मुझको नहीं समझते, यही तुम्हारा ‘राजसी-ज्ञान’ है. जब यह ब्रह्माण्ड एक दूसरे से जुड़ा हुआ, ब्रह्म का शरीर है, तब तुम अपने को भोग में लिप्त होते मुझे भोग का साधन समझ बैठे हो, यही अज्ञानता राजस कहलाती. यही है वातावरणीय शक्ति असंतुलंता का बढते जाना. बाढ़, अकाल, बीमारियाँ गुण्डागर्दी, लूटपाट व व्याभिचार आदि का फैलते जाना. यही है शक्ति का ट्रान्सफोर्मेंशन एक रूप से दूसरे रूप में इसे नहीं समझना ही ‘राजस ज्ञान’ है.