आसुरीं योनिमापन्ना मूढ़ा जन्मनि जन्मनि । मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधर्मां गतिम ।। गीता : 16.20 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
हे अर्जुन ! वे मूढ़ मुझको
न प्राप्त होकर ही जन्म-जन्म में आसुरी योनि को प्राप्त होते हैं, फिर उससे भी अति
नीच गति को ही प्राप्त होते हैं
अर्थात घोर नर्क में पड़ते हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
मूढ़ मुझको न प्राप्त होकर लगातार तेजी से लुढ़कते नीचे गड्ढे में गिरने के
कारण को जानने का प्रयास कर इससे न बचने वाला मूढ़ कहलाता है. यह मुझको न प्राप्त कर पाने के कारण होता है. यही
है, निरंतरता से हो रहे शक्ति क्षय से टूटते-कटते अंगों के कारणों का होना. इस
कारण के निवारक को जो अपने ही भीतर अवस्थित है उसे नही देख पाना मूढ़ की मूढ़त है. यही
है, नीचे ढ़ुलकने के वेग में ब्रेक नहीं लगा पाना. शक्ति प्रवाह को नियंत्रित करने वाला,
रोकने वाला जो न्यूक्लियस में बैठा है वह न्यूट्रॉन ब्रह्म
है, इस पर ध्यान एकाग्र नहीं कर पाना और यही है, ज्ञान के लोप होने से नीच से नीच
योनि में उतरते जाना. अतः भीतर अवस्थित आत्मा के साथ
परमात्मा प्रोटोन के साथ न्यूट्रॉन के होने का ज्ञान व ध्यान ही नरक से छुटकारा
पाने का व उद्धार होने का ज्ञान, ध्यान
व तकनीक है. यही भगवान श्रीकृष्ण कहते है.
गंगा कहती है :
नीचे लुढ़कते जाने वाला मूढ़ वह है जो वह कार्य निरंतरता से करते आ रहा है, जिससे मेरे जल का धनत्व बढ़ता हो. इसमें ऑक्सीजन रखने की क्षमता घटती हो, कार्बन-डाइऑक्साइड, कार्बन-मोनोऑक्साइड, मिथेन आदि गैसों के उत्सृजन बढ़ते हो, वातावरण का ताप व दवाब बढ़ता हो, भूस्खलन तीव्र होता हो, अप्राकृतिक भूकंप होते हो, बाढ़ और कटाव की समस्या तीव्र होती हो, भूजल प्रवाह विकृत और नष्ट होते हो और जलगुण नष्ट होते हो आदि. इन समस्त कार्यों को निरंतरता से करने और कराने वाला महामूर्ख तथा मूढ़ है. यही नदियों को नाली में रूपांतरित करते वातावरण को, मानव संस्कारों को तथा जल-जीवों को विकृत करने वाला होता है. यही है नीचे पतन की ओर ढ़ुलकते जाना.