न मे बिंदु: सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः ।। अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः ।। गीता : 10.2 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
मेरे प्रकट होने को न देवता जानते हैं और न महर्षि क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं का और महर्षियों का आदि हूँ.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
न सुरगणाः न महर्षयः बिंदु मे प्रभवं, न देवता लोग और न महर्षिजन मेरी उत्पत्ति को जानते हैं अतः ये विभिन्न बीज हैं परन्तु समस्त बीजों के बीज मुझ परब्रहम को, अवश्यमभावी को, ब्रहमाण्ड रूपी कल्पतरूपी वृक्ष की जड़ को इनके भी अपने जड़ों के रूप मुझको ये नहीं जानते है. मैं परब्रहम ही सब प्रकार से देवताओं और महर्षियों का आदिकारण सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड की समस्त सूक्ष्माति सूक्ष्म तथा वृहत से वृहत पदार्थों में केन्द्रस्थकण न्यूकलियस एटम के मध्य अवस्थित न्यूट्रॉन सम्पूर्ण आणविक संरचना की अध्यक्षता करते हैं. प्रोट्रोन और इलेक्ट्रान दोनों के आवेशों और इनकी संख्याओं को बराबर-बराबर रखते हुए यह सत्यापित करते हैं कि ये दोनों मिलकर मेरा ही न्यूट्रॉन का
रूप हैं. अत: सम्पूर्ण आणविक संरचना से निर्मित ब्रहमाण्ड न्यूट्रॉन महेश शिव और प्रोट्रोन विष्णु श्रीकृष्ण और इलेक्ट्रान ब्रह्मा को एक साथ लिए अल्फ़ा-बीटा-गामा रूपी शक्ति तरंगों से ब्रहमाण्ड के समस्त क्रियाकलापों को संतुलित रखते हैं, निरंतर ध्यानस्त रहते, चिता भस्म रमाये, निर्लिप्त भाव से करते, शिवरूप शिवलिंगाकार न्यूट्रोन ही श्रीकृष्ण महाविष्णु नारायण बीजों का बीज आदिपुरुष मैं हूँ.
गंगा कहती है :
मेरी लीलामय उत्पत्ति और समस्त क्रियाकलाप बड़े-बड़े अधिकारी और विभिन्न विषयों के मूर्धन्य विद्वान उसी तरह नहीं समझ सकते जिस तरह मानव शरीर में बिना एनाटोमी और मोर्फोलोजी जाने बगैर कोई डाक्टर नहीं बन सकता और हार्ट का ऑपरेशन नहीं कर सकता. अतः जिस तरह समस्त कारणों के कारण न्यूट्रॉन की सार्वभौमिकता करती है, उसी तरह संपूर्ण
बायोटिक-सिस्टम की स्थिरता
को गुणवत्ता-मात्रा और
पानी की गतिशीलता को परिभाषित करते संरक्षण सिद्धान्त को प्रतिष्ठित करती है. इस ज्ञान का नहीं होते हुए समस्त कार्यों का होते रहना ही देवस्वरूप माने जाने वाले उच्च पदाधिकारियों और विभिन्न विषयों के मर्मज्ञ महर्षितुल्य विद्वानों को नदी-प्रबंधन प्रौद्योगिकी को नहीं समझना है.