मनःप्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते ।। गीता : 17.16 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
मन की प्रसन्नता, शांत भाव, गवच्चिन्तन करने का स्वभाव मन का निग्रह और अन्तःकरण के भावों की भलीभाँति
पवित्रता,
इस प्रकार यह मन सम्बन्धी तप कहा जाता है.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
मन की प्रसन्नता, शरीर से
शक्ति क्षय की न्यूनता कलेजे के धड़कन का न्यून होना है. इसे ही शांत भाव कहते हैं. यह तभी सम्भव है, जब यदि शरीरस्थ
केन्द्र आत्मा की अवधारणा वज्रवत हो ‘मैं दीप स्वरूप शिवलिंगाकार हूँ’, यही है ‘शरीरस्थ
ब्रह्म’ को समझना. इस पर
समस्त तरंगों विचारों, अंतः प्रवाहों को समर्पित करना ही अन्तःकरण की पवित्रता
कहलाता है. यही है, शक्ति संकलन-सिद्धांत अथार्त मन सम्बन्धी तप.
गंगा कहती है :
मेरे मन सम्बन्धी तप, मेरे
टर्बुलेन्ट एनर्जी को, मेरे वर्षों के निर्धारित पथ को उन्हें नियंत्रित रखने की
संतुलित तकनीक को कहते हैं. यही है, बिना नदी ज्ञान के नदी को नहीं छूना. तुम
सर्वत्र सभी कार्यों यथा पुल, फ्लड कंट्रोल, मियैन्ड्रींग कंट्रोल, वृक्षारोपण, STP
का इन्सटोलेशन आदि समस्त कार्यों को बिना नदी
ज्ञान के करते हो. इसका मुख्य कारण देश में नदी के किसी इंस्टिट्यूट का नहीं होना है. देखो,
नदी के बालू क्षेत्र का विशाल होते स्वरूप के कारण कटते गाँव, बिना ज्यादा बारिश के
बाढ़, सूखती-सिमटती प्रदूषित होती नदियों से गर्म होता वातावरण आदि समस्याएं से मेरे मन-तप का नहीं होना है.
गीता (श्लोक-2.58)
सत्यापित करती ‘भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी स्थितप्रग्य हैं’ (4) :
कछुआ सब ओर से अपनी इन्द्रियों अंगों को जैसे समेटते हुए भीतर केन्द्रस्थ हो जाता है, उसी तरह स्त्री एवं अन्य सुविधाओं के रहते हुए इन्द्रियों को इन्द्रियों के विषयों से खींचनें व समेंटने वाले और सगे-सम्बन्धी को अपने पद की गरिमा से किसी भी तरह के आर्थिक लाभ से वंचित रखते हुए केवल और केवल आत्मस्त अपने देश सेवा की एक भावनात्मक केंद्र पर समस्त इच्छाओं को समाहित कर देने वाले प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी स्थितप्रग्य हैं.