नियतं संगरहितमरागद्वेषतः कृतम् । अफलप्रेप्सुना कर्म यत्तत्सात्त्विक मुच्यते ।। गीता : 18.23 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
जो कर्म नियमित है और जो
आसक्ति, राग या द्वेष से रहित कर्मफल की चाह के बिना
किया जाता है, वह सात्त्विक कहलाता है.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
नियमित-कर्म, निश्चित
शक्ति-प्रवाह को निर्धारित पथ से परिभाषित और निर्देशित लक्ष्य तक पहुँचना को कहते
हैं. यह तभी सम्भव होता जब रास्ता अवरोध घर्षण व कम्पन्न राग-द्वेष फल इच्छा से
रहित हो और यह तभी संभव है जब रास्ता आवागमन के लिए
प्रमाणिक रूप से शास्त्र-पुराण से प्रतिष्ठित विधि सम्मत हो. यही है न्यूनाधिक
शक्ति-प्रवाह से लक्ष्य तक पहुंचने का ‘सात्त्विक-कार्य’.
(32) भारत के
स्थित-प्रग्य प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ‘भक्ति-प्रतिष्ठित कर्मयोगी’ हैं ?
गीता (12.5-7) में भगवान
श्रीकृष्ण कहते हैं कि निराकार ब्रह्म का उपासक इन्द्रियों को पूर्णतया नियंत्रित
रखते सर्व कल्याणार्थ कार्य करता है जो ज्यादा कष्ट कारक है और सगुणरूप परमेश्वर
को अनन्य भक्तियोग से निरंतरता से चिन्तन करने वालों को कार्य सिद्धि व लक्ष्य प्राप्ति
जल्द मिलती है. इन प्रतिष्ठित मौलिक संस्कार पथ का बाल्यकाल से अटल अनुसरण करने वाले
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के समर्पित सदस्य रह कर जगजननी माँ के श्री चरणों में
अपने हृदयस्थ बातों को नित्य प्रति समर्पित करते रहने वाले जैसे बेटा माँ से उसके
हृदय में चपक कर फुसफुसाते शब्दों में अपने आत्मीय बातों को अपने लिए नहीं अपने समस्त बन्धु बाँधवों के लिए माँ से कहता ‘ माँ’, क्या मानव का मन इस हद तक विकृति होते जाना है, किसी
भी अपेक्षा के बिना सरल, सहज, निर्पेक्ष भाव से पवित्रता पूर्वक निर्मल रूप से
क्या मानव मानव को नहीं पा सकता है? क्या ऐसे प्रयास का मार्ग कठिन है? वैसे भी जीवन की तृप्ति यही तो जीवन
धर्म है. यदि यह तृप्ति मानव मन को मानव-स्वरूप में स्वीकार नहीं हो तो यह मार्ग
कहाँ जा कर रुकेगा? आज तो मानव अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर स्वंग
द्वारा रचित मायावी जाल से मुक्त होकर जीने के लिए कहाँ तैयार है. क्या जीवन
उपयोगितावाद से परे होकर जीवन जीने का कोई संतोष है ही नहीं? माँ, मैं मानव को उसके पूर्ण रूप में पाने का अथक प्रयत्न करता हूँ. किसी भी
अपेक्षा के बिना मानव को मानव की तरह प्राप्त करने की शक्ति दे, जहाँ लेनदेन कुछ
भी न हो, जहाँ कोमल शब्दों का भ्रमजाल न हो ‘(पुस्तक-साक्षीभाव )’. ये
हैं भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के हृदयस्थ आचरण की विलक्षणता का
समर्पण माँ जगजननी को. यही है देश के सर्वश्रेष्ठ भक्ति योग आधारित कर्मयोगी का
होना.
गंगा कहती है :
सात्विक कर्म मेरे जल गुण विलक्षणता के संरक्षण का कार्य है. इसके तीन सिद्धान्त हैं - (1) भविष्य में बाँधों का डेड-स्टोरेज छोटा हो. अतः अब यदि बाँध बनें तो वे माइक्रो-डैम हो (2) हमारे शरीर से नियंत्रित जल का दोहन हो और मेरे सम्पूर्ण बेसिन में इन-फ्लो, वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक लागू हो और (3) STP अकेले प्रदूषण नियंत्रण का उपाय नहीं है, इसको ध्यान में रखते हुए नदी सैण्ड वेड एनर्जी का उपयोग हो.