अहं सर्वस्य प्रभवो मत्त्तः सर्वं प्रवर्तते ।। इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः ।। गीता : 10.8 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
मैं ही सम्पूर्ण जगत की उत्पत्ति का कारण हूँ और मुझसे ही सब जगत चेष्टा कार्य करता है. इस प्रकार समझकर श्रद्धा और भक्ति से युक्त बुद्धिमान भक्तजन मुझ परमेश्वर को ही निरंतर भजता है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
प्रभव: अथार्त उत्पत्ति व प्रवर्तते
अथार्त चलते-बदलते इस संसार के समस्त सूक्ष्म तथा वृहत पदार्थों की संरचणा और संरचणा में अन्तर के तहत शक्ति में भिन्नता. इस भिन्नता के तहत क्रियाशीलता का रूपांतरित होते चलना. जगत के समस्त जीव, निर्जीव पदार्थों में विभिन्नता से निरूपित होते हुए परिवर्तन की व्याख्या करता रहता है. अतः यह समस्त सांसारिक खेल “न्यूकलियस” परमेश्वर का है. इस केन्द्र के नजदीक रहना, स्थितप्रज्ञ होना व परमेश्वर को निरंतर भजते रहना है.
गंगा कहती है :
मैं गंगा बेसिन की सम्पूर्णता से अधिष्ठात्री हूँ. इसी तरह सम्पूर्ण जगत के जीव, निर्जीव तथा समस्त वस्तुएं विभिन्न नदियों से बनते हुए व चलते हुए इनके बदलते मृदा की बदलती बनावट व सजावट और ढ़ाल से जगह और समय से बदलते केन्द्रों की क्रियाशीलता पर आधारित रहते हैं. अत: नदी के काट से नतोदर किनारे का कटाव केन्द्र, उन्नतोदर किनारे का बालू-जमाव केन्द्र, प्रदूषक जमाव का बिलगाव केन्द्र आदि से नदी की समस्त समस्याओं के चारित्रिक गुणों को परिभाषित करते हुए उनके निदान के सरलतम स्थायी निदान कम लागत से किया जा सकता है. यही श्रद्धा, भक्ति व ज्ञान से युक्त हो परमात्मा की व गंगा की सेवा करना है.