बालूक्षेत्र STP की बढ़ती गुणात्मक शक्ति और शहर STP की स्क्वेयर रूट से घटती शक्ति के अन्तर को नहीं समझ पाना गंगा की बड़ी समस्यायें हैं...
21. समय से बालू का घनफल तथा बालू के तापमान का बढ़ना :
गंगा-जल-स्तर, इस की प्रवाह-रेखाएं, इसकी गुण-शक्ति, दिसंबर माह के बढ़ते तीव्र ढाल से मई- जून में नीचे ढ़ुलकते जल स्तर से गंगा का प्रवाह न्यूनतम् स्तर पर आ जाता है. वाराणसी में औसतन गंगा-जल-स्तर 58.6 मी., जल-वेग 8-10 से./सें, किनारे के पास D.O., 3-5 mg/l और B.O.D., 8-15 mg/l पूरे घाट-क्षेत्र में रहता है. यह आँकडा सत्यापित करता है कि जितना ही जल-स्तर घटता है, शहर में STP की क्षमता, गंगा के नदोत्तर किनारे पर प्रदूषण निवारण के लिये सक्षमता नहीं रखती है. यही STP यदि बालूक्षेत्र में उन्नदोत्तर किनारे पर अवस्थित होती है, तो, ज्यों-ज्यों जल-स्तर नीचे उतरता जाता है, बालूक्षेत्र की अधिकतम चौड़ाई और ऊंचाई दिसम्बर माह की तुलना में 25-30% बढ़ जाती है और बालूक्षेत्र के तापमान में न्यूनतम् 12-15 डि.से. का अन्तर हो जाता है. इस तरह बालूक्षेत्र की शक्ति गुणात्मक रूपों से, प्रदूषण निवारण के लिए, जल-स्तर के घटने से, बढती चली जाती है
22. बालूक्षेत्र, बालू के भीतर और बाहर रासायनिक क्रिया के समतूल्य वातावरणीय परिस्थितिकी को प्रस्तुत करता है :
बालू सतह का मृदुल-ढ़ाल, इसके नीचे के भू-जल के सरल-ढ़ाल को, स्लाइम-लेयर की स्थिरावस्था को, भीतर की सौम्य रासायनिक प्रतिक्रिया को, सौर्य-शक्ति के विभिन्न स्तर की अवशोषण शक्ति से हेवी मेटल और पैथोजन्स सहित विभिन्न अन्य रासायनिक- प्रदूषकों को व्यवस्थित करने को परि भाषित करता है. इन भीतरी रासायनिक-क्रियाओं के पारिस्थितिकी को वर्तमान के शहरी क्षेत्र का STP कदापि पूरा नहीं कर सकता है. यहां के स्वाइल माइक्रोव, इसकी पोरोसीटी-परमियैबलिटी, भू-जल ढ़ाल आदि कुछ भी समतूल्य नहीं है. अतः बालूक्षेत्र का STP ही सरलता व सम्पूर्णता से न्यूनतम खर्च में, प्रदूषण-व्यवस्था का निदान दे सकता है.