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राग, किसी चीज से बेतहाशा लगाव शक्तिक्षय कारक है. भय, शक्ति-तरंगों का एकाएक भीतर प्रविष्ट होना भी शक्तिक्षय कारक है और क्रोध कोशिका को आन्दोलित हो शक्ति-तरंगों को शरीर से बाहर निस्तारित होना भी शक्तिक्षय कारक है. इन तीनों शक्तिक्षय कारकों को रोकना ही "हमारा शरीर ब्रह्म शरीर के भीतर" की निरंतरता का अभ्यास आत्मज्ञान है. यही कोरोना वायरस, गंगा एवं अपनी अन्य भयावह समस्याओं के निदान का और स्वयं को पुनः जन्म नहीं लेने का सरल एवं ठोस आधार है.
हे भोलेनाथ ! हमारा आरंभ से यह दृढ़संकल्प है कि "हमारा शरीर आपके शरीर के भीतर है" राग, भय और क्रोध हमारी आत्मा को कैसे बाँधेगा? राग, किसी चीज से अपने आप को चिपकाने को कहते हैं न? हम जब आप के भीतर में हैं तो समझेंगे संसार की हर चीज आपकी है. तब न कोई चीज हमसे और न हम किसी चीज से चिपकेगें. अतः संसार हमें आकर्षित नहीं कर सकता. इस स्थिति में हमारी शक्ति की बचत होती रहेगी. यही है संसार की किसी वस्तु से राग नहीं रखना, आत्मा पर बाहर से आकर्षण बल का कार्य न करना, शक्ति के खिंचाव का न होना, निरंतरता से शरीर को झकझोरते शक्तिक्षय का न होना और राग रहित जीवन जीना. यही है "भोगते हुए नहीं भोगना", हर चीज को दूसरे की चीज समझकर प्रेमपूर्वक उपयोग में लाना और उसे भूल जाना. यही है शक्तिक्षय करते शक्ति क्षय नहीं करना. अतः हे भोलेनाथ यही है ना "वर्तमान में जीना", यही है ना बिना शक्तिक्षय किये दूसरे के सहारे आनंद, शान्ति की अवस्था को प्राप्त करना, यही है ना निमंत्रित रहना और बिना खर्चे और परेशानी के मलाई-राबड़ी खाना. यही है "राग, भय और क्रोध से रहित आपके शरीर के भीतर अपने शरीर को रखना". अपना कुछ भी नहीं की दृढ़ अवधारणा से भोग-विलास करते, राजा-जनक जैसे विदेह रहना. क्या इसी को भगवान श्रीकृष्ण ऐसा कह रहे हैं?
वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः । बहवो ग्यानतपसा पूता मद्भावमागताः ।। गीता : 4.10 ।।
पहले भी, जिसके राग, भय और क्रोध सर्वथा नष्ट हो गये थे और जो मुझमें अनन्य प्रेम पूर्वक स्थित रहते थे, ऐसे मेरे आश्रित रहने वाले बहुत से भक्त उपर्युक्त ज्ञानरूप तप से पवित्र होकर मेरे स्वरूप को प्राप्त हो चुके हैं.
हे भोलेनाथ ! आपके शरीर, अनन्त-ब्रह्मांड के भीतर हमारा सूक्ष्म शरीर है, इसको स्वीकारने में कष्ट किस बात का? यदि यह स्वीकार तो "हम ताल क्यों ठोकते हैं" और "अहम् ब्रह्मासमि" की राग को क्यों अलापते हैं? यही है ना अपनी शक्ति का क्षय करते संसार को कोरोना वायरस का रोग देना. यही है ना गंगा के दोहन और शोषण का कारण. यही है ना जीवन भर हाय-हाय करते मरना और बार बार जन्म लेना. हे भोलेनाथ ! आपके शरीर के भीतर हमारा शरीर" की दृष्टि, ज्ञान और ध्यान, आप जगत को देने की कृपा किजिये.