गंगा नदी में बढ़ते प्रदूषण को लेकर एनजीटी के कड़े रूख के बाद अब सीपीसीबी (केन्द्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड) भी इसको लेकर सक्रिय है. नदी में प्रदूषण की रोकथाम के लिए गठित सबसे शीर्ष संस्था ने गंगा के जल की स्थिति को लेकर चिन्ता व्यक्त की है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश के बाद सीपीसीबी ने हाल ही में नदी के जल की गुणवत्ता को लेकर शोध किया, सीपीसीबी द्वारा अपनी वेबसाइट पर जारी किए डाटा में पाया गया कि गंगा नदी में फीकल कोलीफोर्म (मल) की मात्रा का स्तर काफी अधिक बढ़ गया है, जो कि अनुमत्य स्तर से 12 गुना अधिक है. यह स्थिति वास्तव में भयावह एवं चिन्तनीय है.
सीपीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार, नदी में पाए मल में इकोली जैसे फीकल कोलीफोर्म बैक्टीरिया पाए गए, जो कि अनुपचारित सीवेज के द्वारा जल को दूषित कर रहे हैं. सीपीसीबी ने नौ राज्यों से होकर गुजरने वाली सीमाओं पर गंगा के जल की गुणवत्ता का विश्लेषण किया, जिसमें उत्तर- प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार जैसे राज्य शामिल रहे. जिसके बाद सीपीसीबी ने सभी राज्यों में नदी के जल में फीकल कोलीफोर्म की स्थिति को लेकर मैप के रूप में डाटा जारी किया, इसके अंतर्गत उत्तराखंड के बाद सिर्फ सुल्तानपुर और बिजनौर में ही गंगा नदी के जल में फीकल कोलीफोर्म की मात्रा अनुमेय स्तर के अंतर्गत पायी गई. हालांकि इसमें झारखंड की दो सीमाओं में एफसी के स्तर की जानकारी नहीं दी गई है.
Pic Source - CPCB Website
गंगा
में एफसी की अधिकता नदी के जल को बुरी तरह प्रदूषित करने के साथ ही कई गंभीर
बीमारियों के कारण भी बन रही है. ऐसे में सरकार व प्रशासन की चिंता का बढ़ना जायज
भी है. केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, नदी में एफसी का स्वीकृत स्तर
2500 एमपीएन/ 100 मि.ली. तथा वांछनीय स्तर 500 एमपीएन/ 100 मि.ली. तक हो सकता है लेकिन ज्यादातर स्थानों पर नदी में मल
का स्तर इससे कई गुना अधिक पहुंच चुका है.
हालांकि
जुलाई 2014 में,
भारत सरकार ने "नमामि
गंगे" नाम से एक एकीकृत गंगा विकास परियोजना की घोषणा की, जिसका मुख्य
उद्देश्य गंगा जल संरक्षण, प्रदूषण से निपटना और नदी का नवीनीकरण
करना था. इस बहुउद्देशीय परियोजना के तहत आठ राज्यों को कवर किया गया और अनुमानित 2,958
करोड़ रुपये जुलाई 2016
तक गंगा की सफाई,
अपशिष्ट उपचार संयंत्रों की स्थापना,
नदी की जैव विविधता के संरक्षण और
सार्वजनिक सुविधाओं के विकास जैसे विभिन्न प्रयासों में खर्च किए गए. साथ ही वर्ष
2018 तक गंगा को पुनर्जीवन देना इस योजना का सबसे बड़ा उद्देश्य था. परन्तु
सीपीसीबी की रिपोर्ट की माने तो उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक के गंगा के
विस्तार में गंगा नदी का जल पीना तो दूर नहाने योग्य भी नहीं है. क्या अब भी सरकार
नमामि गंगे का राग अलापेगी या अपनी खामियों को दूर करके वास्तव में गंगा को अविरल
बनाने का कार्य किया जाएगा यह भविष्य के गर्त में छिपा है.