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गंगा नदी - पर्वतों की संतुलित अवस्था शिवत्व का परिचायक है (MMITGM : 41 व 42)

  • By
  • U.K. Choudhary
  • February-17-2020

केन्द्रस्थ : Catching hold of Nucleus : MMITGM : (41)


ब्रह्म-मुख, पदार्थिय-शक्ति-प्रवाह-मार्ग वातावरण है। यही, ब्रह्म-रूप-धारी पंच-दिशाओं की पंचमहाभूतों की प्रवाह-शक्ति का होना शिव का पंचमुख होना है.

शिव से-हे भोलेनाथ! आप का ध्यानस्थ-पंचमुखी होना क्या है? क्या यह आपके पाँच-दिशाओं की शक्ति-संतुलितता को परिभाषित करता है? चार दिशायें तो समझ में आ रही है, पांचवी क्या ऊपर की दिशा है? क्या ये पँच-महाभूतों की स्थिर-संकलित-संतुलनावस्थाओं की प्रवाहें तो नहीं? आपके पर्वतीय-शिवलिंग-स्वरूप में आपके पंचमुखी होने का क्या अर्थ है? क्या यह पाँच दिशाओं (चार-दिशायें तथा ऊर्ध्वगामी-पथ) के पदार्थिय तथा शक्ति अन्तःप्रवाह तथा इनके बाह्य-प्रवाह को प्रतिष्ठित करता है? क्या पंच-मुख, पदार्थ-शक्ति-प्रवाह के पाँच ढ़ाल हैं?

पंचमुखों से, पंच-दिशाओं से, पंच-विधियों से, पंच शक्ति-तरंगों से आपने जीव-जगत को प्रतिपल आँख-बन्द कर ध्यानस्थ रहते निहारते रहने वाली आपकी तकनीक तो नहीं? क्या लगभग 356 किलोमीटर भूतलीय व्यास का आपका हिमालयन-शिवलिंग और 7 किलोमीटर से ज्यादा ऊँचाई का पाँच-दिशाओं का आपके इस लिंग का आकाशीय-ढ़ाल आपका महान-शक्ति-अवशोषण तथा निस्तारण का ढ़ाल है? क्या यही-ढ़ाल अन्य समस्त-ढ़ालों के आयामों को, शक्तियों को परिभाषित करता है?

"Internal and external space- gradients define all types of energy-flux radiations" क्या आपका ध्यानस्थ पँच-मुख यह निर्देशित करता कि संतुलित- शक्ति-प्रवाहों के लिये शांतिपूर्ण वातावरण की आवश्यकता है, यदि यह नहीं तो क्या? आपके पंचमुखी-विलक्षण हिमालयन- स्वरूप को कोटिशः प्रणाम।


केन्द्रस्थ : Catching hold of Nucleus : MMITGM : (42)


"चिदाकाशमाकाशवासं" हे शिव! आप की शक्ति आकाश का स्वरूप ही वातावरण है कैसे? सूक्ष्म और वृहद बदलता आकाश, निरंतरता से संतुलनावस्था की शक्ति-प्रवाह करता कैसे? अतः क्या आकाश को बदलना, पृथ्वी को चक्रमण करवाना ही आपकी शक्ति का खेल, जीव-जगत की समस्त क्रियाओं को परिभाषित करता है? यह आकाश क्या है? क्या बाहरी-आकाश, वस्तु का आकार-प्रकार-स्थान है? और उसके भीतरी आकाश, उसके भीतरी कण की सजावट है? इन आकाशों के आकाशीय अन्तर का निरंतरता से होते रहना ही वातावरणीय शक्ति-प्रवाह प्रकृति है? हँ भोलेनाथ! यही आप शिव-ब्रह्म के क्षण-क्षण से रूपांतरित होते आकाशीय शस्त्र के सर्वत्रैव की उपस्थिति ही वातावरण है।


निरंतरता से अपने विशेष हिमालयन शिवलिंगाकार स्वरूप की विशेष उपस्थिति के तहत अपने भीतरी-बाहरी आकाशीय स्वरूप को बदलते, शक्ति-प्रवाह को रूपांतरित करते, वर्षा-शरद-वसंत-ग्रीष्म ऋतु से अपना चक्रमण करवाने वाले भोलेनाथ! यह तो मान गया कि जिस तरह पृथ्वी के भीतरी-बाहरी-आकाशीय चरित्र को पेड़-पौधे औस्मेटिक-प्रेशर के तहत जीवन्त रहते वातावरण को संवर्धित करते हैं, उसी तरह आपका पर्वतीय-शिवलिंग वातावरण का प्रतिपालक है। अतः संतुलनावस्था की पदार्थिय-शक्तिय-प्रवाह ही आपके पर्वतीय-लिंग के शिवत्व का परिचायक है। अब दो प्रश्न उठते हैं, भोलेनाथ! भारत के सम्पूर्ण वातावरण के केन्द्र आपके हिमालयन शिवलिंग के बाहरी-भीतरी आकाश को संरक्षित कैसे किया जाए? इनकी प्राकृतिक और अप्राकृतिक समस्याओं का निवारण आप कैसे करेंगे? ज्ञान-भक्ति-शक्ति, आपकी पूजा क्या? सिखाइये भोलेनाथ! आपको कोटिशः प्रणाम।


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