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नमामि गंगे अभियान से भी निर्मल नहीं हो पाई है गंगा – केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड रिपोर्ट (2017-18)

  • By
  • Deepika Chaudhary
  • December-22-2018

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार जारी की गयी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वर्ष 2017-18 की रिपोर्ट के अनुसार गंगा नदी अधिकतर स्थानों पर अत्याधिक प्रदूषित है. मानसून पूर्व और मानसून के बाद उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल राज्यों के अंतर्गत विभिन्न स्थानों पर गंगा नदी पर किये अध्ययन के अनुसार सीपीसीबी द्वारा जारी की गयी रिपोर्ट “गंगा नदी जैविक जल गुणवत्ता आकलन (2017-18)” कहती है कि मानसून से पहले गंगा अपवाह वाले 41 स्थानों में से तकरीबन 37 स्थानों पर गंगा प्रदूषित थी, वहीँ मानसून के बाद 39 स्थानों में से केवल हरिद्वार में गंगा जल की गुणवत्ता पेयजल की दृष्टि से उचित पाई गयी.

सीपीसीबी ने जल गुणवत्ता के अध्ययन के लिए प्री मानसून फेज और पोस्ट मानसून फेज के अंतर्गत डेटा संग्रहित किया. 2255 किमी लम्बी गंगा नदी के जैविक परीक्षण के लिए उद्गम स्थल से लेकर समागम स्थल तक के राज्यों को अध्ययन में सम्मिलित किया गया था.

प्री-मानसून चरण में पानी की गुणवत्ता की जाँच के लिए, सीपीसीबी द्वारा अप्रैल 2017 में गंगा का जैविक परीक्षण शुरू किया गया था और जून 2017 में 44 RTWQM स्थानों पर इसे पूरा किया गया. वहीँ इसने दिसंबर 2017 से मार्च 2018 तक मानसून चरण के अंतर्गत गंगा के जल का परीक्षण किया.

यह परीक्षण 36 स्थानों पर RTWQM स्टेशनों की स्थापना के बाद ही आरम्भ किए गए थे. इनकी स्थापना वर्ष 2017 में पूरी हो गई थी और सेवा प्रदाताओं ने मार्च 2017 से सभी 36 स्थानों से डेटा प्रदान करना शुरू कर दिया था. जल गुणवत्ता जाँच के लिए गंगा नदी से लिए गए पानी के सैंपलों को पांच श्रेणियों में रखा गया था :

1. साफ़ (ए)

2. सामान्य प्रदूषित (बी)

3. मध्यम प्रदूषित (सी)

4. अत्याधिक प्रदूषित (डी)

5. गंभीर प्रदूषित (ई)

नमामि गंगे अभियान से भी निर्मल नहीं हो पाई है गंगा – केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड रिपोर्ट (2017-1

नमामि गंगे अभियान से भी निर्मल नहीं हो पाई है गंगा – केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड रिपोर्ट (2017-1

जैविक जल गुणवत्ता मानक

प्री मानसून अवधि अध्ययन का निष्कर्ष :

मानसून से पूर्व के अध्ययन के अनुसार उत्तराखंड में, जैविक परीक्षण के माध्यम से पानी की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने पर हरिद्वार के भीमगौड़ा बैराज में साफ़ जल से जगजीतपुर एसटीपी के बाद से मध्यम प्रदूषित जल के मद्देनजर जल गुणवत्ता में क्रमिक गिरावट दर्ज की गयी. उत्तर प्रदेश में, 18 अध्ययन स्थानों में से, बायोमोनिटोरिंग डेटा के आधार पर फरुखाबाद में घाटिया घाट पर सामान्य प्रदूषण, वाराणसी (पुराने पुल) पर गंभीर प्रदूषण पाया गया तथा शेष 16 स्थानों पर पानी की गुणवत्ता मध्यम प्रदूषण को दर्शाती है.

साथ ही उत्तर प्रदेश में, 6 सहायक नदियों के बीच, कानपुर में पांडु नदी की जल गुणवत्ता गंभीर प्रदूषण को दर्शाती है, जबकि शेष 5 सहायक नदियों की जल गुणवत्ता मध्यम प्रदूषण अंकित करती है.

रिपोर्ट के अनुसार बिहार में, सभी 4 परीक्षण केन्द्रों पर गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता में मध्यम प्रदूषण पाया गया. पश्चिम बंगाल में, बायोमोनिटोरिंग डेटा सिरमपोर (सामान्य प्रदूषित) के अतिरिक्त सभी गंगा नदी स्थलों पर मध्यम प्रदूषण को दर्शाता है.

पोस्ट मानसून अवधि अध्ययन का निष्कर्ष :

मानसून के बाद लिए गए सैंपलों के अध्ययन से नतीजा निकला कि उत्तराखंड में, जगजीतपुर एसटीपी में जैविक जल की गुणवत्ता जगजीतपुर एसटीपी बहिर्वाह के बाद मध्यम से भारी प्रदूषण  में बदल जाती है. जबकि हरिद्वार बैराज में जैविक जल की गुणवत्ता साफ पाई गई और यह गंगा नदी के सम्पूर्ण विस्तार में एकमात्र ऐसा स्थान है, जो पेयजल के मानकों का अनुपालन करता है. 

उत्तर प्रदेश में, 25 अध्ययन स्थानों में से, 2 स्थानों पर, पुल SH21 कन्नौज और पांडु नदी के स्थान पर जैविक जल गुणवत्ता भारी प्रदूषण सीमा में पाई गई. शेष 23 स्थानों पर पानी की गुणवत्ता मध्यम प्रदूषण को दर्शाती है. बिहार में, सभी 4 परीक्षण स्थानों पर गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता मध्यम रूप से प्रदूषित पाई गयी है. पश्चिम बंगाल में, बायोमोनिटोरिंग डेटा सभी 9 स्थानों पर मध्यम प्रदूषण को अंकित करता है.

रिपोर्ट में यह भी देखा गया कि गंगा नदी के उद्गम स्थल पर कोई भी स्थान गंभीर रूप से प्रदूषित नहीं है, परन्तु एसटीपी आउटफ्लो के बाद से प्रदूषण का स्तर मध्यम पाया गया है. वर्ष 2014-15 एवं हालिया रिपोर्ट के तुलनात्मक अध्ययन से यह भी स्पष्ट होता है कि गंगा नदी का जल पिछले चार वर्षों में किसी भी स्थान पर साफ़ नहीं हुआ है, बल्कि जगजीतपुर (उत्तराखंड), कानपुर, प्रयागराज और वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में गंगा नदी विगत चार वर्षों में अत्याधिक प्रदूषित हुई है.

गंगा नदी की जैविक जल गुणवत्ता की तुलना (2014-18) 

नमामि गंगे अभियान से भी निर्मल नहीं हो पाई है गंगा – केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड रिपोर्ट (2017-1

नमामि गंगे अभियान से भी निर्मल नहीं हो पाई है गंगा – केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड रिपोर्ट (2017-1  

सीपीसीबी का मानना है कि जल की गुणवत्ता के लिए जल का कम से कम “बी” श्रेणी का होना आवश्यक है, जिसके अंतर्गत नदी का उचित संरक्षण करना शामिल होना चाहिए. गौरतलब है कि वर्तमान सरकार द्वारा गंगा नदी के संरक्षण के लिए “नमामि गंगे” जैसी बड़ी परियोजना चलाई जा रही है, जिसके अंतर्गत अब तक करोड़ों रूपये गंगा को जीवन देने के नाम पर खर्च किये जा चुके हैं. इस रिपोर्ट के जारी होने से यह साफ़ होता दिख रहा है कि नमामि गंगे अभियान को कोई असर फ़िलहाल गंगा नदी पर नहीं हुआ है. इसके उलट वर्ष 2013 के मुकाबले इसकी स्थिति और अधिक बिगड़ गयी है.

केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के द्वारा गंगा नदी की जल गुणवत्ता का परीक्षण लम्बे समय से विभिन्न स्थानों पर किया जा रहा है और भौतिक-रासायनिक एवं जीवाणु मापदंडों (बीओडी, सीओडी, डीओ, तापमान, पीएच, कुल कॉलिफॉर्म, मल कोलीफॉर्म आदि) के आधार पर गंगा के जल का मूल्यांकन किया जाता रहा है. गंगा नदी के बढ़ते प्रदूषण को लेकर सीपीसीबी ने चिंता व्यक्त की है कि,

“गंगा को प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों से बेहद खतरा है और यह उन 400 मिलियन लोगों के लिए चिंता का कारण है जो नदी के आस पास रहते हैं. प्रदूषण से न केवल मनुष्यों को खतरा है, बल्कि 140 से अधिक मछली प्रजातियों, 90 उभयचर प्रजातियों और लुप्तप्राय गंगा नदी डॉल्फिन को भी खतरा है.”

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