आदरणीय
परिवहन, नदी विकास और गंगा पुनरोद्धार मंत्री
श्री नितिन गडकरी जी
भारत-सरकार
नई- दिल्ली
विषय : आपका वक्तव्य “गंगा के कायाकल्प के लिये 18000 करोड़ रुपये की लागत से सात-राज्यों में 115 STP का निर्माण होगा”
महाशय,
सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लांट मुख्यत: अवजल के, अधिकतम 70-80% कार्बनिक-भार को व्यवस्थित करने की क्षमता रखती है. जैविक, अकार्बनिक एवम् अन्य भारों को व्यवस्थित करने की क्षमता इसमें नहीं के बराबर होती है, जो वायू और मृदा प्रदूषण का भी कारण होता है. इन प्रदूषकों को गंगा का बालूक्षेत्र, कम-दूरी और समय में, व्यवस्थित करने की क्षमता रखती है. अत: इन समस्याओं के निदान के लिये, STP का स्थान गंगा के बालूक्षेत्र में होना, समस्त तकनीक के दृष्टिकोण से आवश्यक है. यह बालू क्षेत्र किसी भी स्थान पर तीन दिशाओं में अवस्थित रहता है. अत: STP किसी भी उपयुक्त दिशा के सेंड-बेड से जोड़ा / अवस्थित रखा जा सकता है. उदाहरण के लिये; वाराणसी के ऊत्तर, दक्षिण और पूरब में सेन्डबेड है. गंगा के किनारे के सभी शहरों के तीन भाग में बालू-क्षेत्र हैं और विदित हो कि महाकुम्भ, प्रयाग-राज के 4-5 करोड़ लोगों के मल-जल की व्यवस्था वहाँ का बालूक्षेत्र ही करता है. अत: बालूक्षेत्र का STP गंगा के प्रदूषण की समस्या का निराकरण बालू के गुण के अतिरिक्त, सौर्य-ऊर्जा का, रिक्त-स्थान के कारण वायू-ऊर्जा का, जमीन में ढ़ाल होने के कारण “हाइड्रौलिक-ग्रेडियेन्ट” का, बालू क्षेत्र के पास बेग ज्यादा होने के कारण गतिज-ऊर्जा का उपयोग एक साथ कर सकता है. इनके साथ ही यह मरूभूमि-स्थिर-क्षेत्र है, अत: STP के लिये आवासीय शहरी मूल्यवान जमीन का उपयोग नहीं होगा और शहर के लोग प्रदूषण का शिकार नहीं होंगें, जैसा कि वाराणसी में, भगवानपुर, दीनापुर आदि के लोग, चर्म-रोग और अन्य रोगों का शिकार हो रहे हैं और गोईठरवाँ और रमणा के लोग होगें. प्रदूषण नियंत्रण की यह व्यवस्था “तीन-ढ़लान का सिद्धान्त” के नाम से जाना जाता है. महाशय वर्तमान में , वाराणसी से लगभग 450 एम.एल.डी (मिलियन ली.प्रति दिन), 4.5 क्यूबिक मी/ सें अवजल गंगा में निस्तरित होता है. इसके लिए मात्र 0.45 वर्ग कि. मी. बालू-क्षेत्र की आवश्यकता होगी. इस तरह से एक बालू-क्षेत्र की क्षमता जरूरत से 72 गुणा ज्यादा है. स्मरण रहे, जब वाराणसी में गंगाजल स्तर, आर.एल. 61. मी. से होता तो गंगा का डाइल्यूशन-फैक्टर 25000 गुणा बढ जाता है. अत: RL. 61 मी. के बाद STP की कोई आवश्यकता नहीं होती है.
अत: श्रीमान से निवेदन है कि STP का निर्माण बालूक्षेत्र में करवाने की कृपा करें. महामना मालवीय इन्स्टीट्यूट् ऑफ टेक्नोलॉजी फॉर द गंगा-मैनेजमेंट, MMITGM, इसकी तकनीक दे सकती है.
निवेदक
प्रो. उदयकान्त चौधरी
पूर्व विभागाध्यक्ष, सिविल इंजीनियरिंग विभाग, आई. आई.टी., बी. एच.यू संस्थापक निदेशक, MMITGM, B-36/21 C-6 ब्रह्मानन्द एक्शटेंन्शन-1
दूर्गा कुण्ड , वाराणसी
मो. 9415201883