ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् । छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदबित् ।। गीता : 15.1 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
श्री भगवान् बोले - संसार पीपल वृक्ष का रूप है. आदिपुरुष, परमेश्वर इसके मूल हैं और ब्रह्मरूप इसके मुख्य शाखा वाले तथा वेद इसके पत्ते कहे गये हैं, उस संसार रूप वृक्ष को जो पुरुष मूल सहित तत्व से जानता है, वह वेद के तात्पर्य को जानने वाला है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
संसार पीपल के वृक्ष सदृष्य गहरी जडों, मजबूत डालों, दूध सदृश्य रस वालों की दिन-रात समस्त-जीव को ऑक्सीजन देने वाला है. उसके पत्ते जैसे जीव-निर्जीव समस्त पदार्थों के कण-कण को डुलाते, हिलाते, कँपकपाते रहने वाला, जन्म लेते, बड़े होते रहते रखने वाला हैं, यही है संसार के समस्त-जीव का जीवन-चक्र. पीपल के पत्ते की भाँति, संसार में शायद यही वृक्ष है, जो सर्वत्र पाया जाता है,यही है विभिन्न आकारों-प्रकारों, गुणों-शक्तियों के पदार्थों से निर्मित संसार, पीपल का वृक्ष, जीवन रस से संतृप्त और इसमें विभिन्न आवृतों-आयामों के तरंगों से निरंतरता से नृत्य करता आ रहा जीव, उसका जगत, जिसकी व्याख्या वेदों ने गायी है.
गंगा कहती है :
हिमालय से बंगाल की खाड़ी तक तुम हमारे भू-जल-प्रवाह एक्विफर-एसट्रैटम के चारित्रिक गुण को नहीं समझते हो, यही सम्पूर्णता से मेरी जड़ है. इस जड़ की अनभिज्ञता के कारण मेरे विशाल समतल बेसिन के किलोमीटर की गहराई में एलुविअल स्वाइल का होना है. अनजान है, यही है भारत के रिवर-सिस्टम का सम्पूर्णता से असंतुलित होना इसलिये है क्योंकि भू-जल और सतही जल की अवैज्ञानिकता अत्यधिक दोहन पर नियंत्रण किसी तरह का नहीं है. There exists no Scientific and Technical coordination between the Department of Irrigation and Ministry of Water-Resources. यही है, बह्मा के कार्य का नहीं होना. इसी तरह वाटर-सेड मैनेजमेंट की आवश्यकता है, जो नदी को पीपल-वृक्ष के पत्ते के समान चारित्रिक गुणों वाला समझ कर कार्य करे.