मोधाशा मोधकर्माणो मोधग्याना बिचेतसः ।। राक्षसीमासुरी चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः ।। गीता : 9.12 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
वे व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ ज्ञान वाले विक्षिप्तचित अज्ञानीजन राक्षसी आसुरी और मोहिनी प्रकृति को ही धारण किये रहते हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
आशा, शुभ कर्म और ज्ञान कोशिका को व्यवस्थित कर शक्ति प्रवाह के निर्धारित आयाम को नियंत्रित पथ से निरंतरता से एकलव्य की भाँति लक्ष्य पर निस्तरित करना होता है. आसुरी
स्वभाव का मनुष्य दूसरों के दुःखों की परवाह नहीं करता, इसका अर्थ है कि दूसरों का दुःख वातावरण को कम्पन्नावस्था में रखेगा, जो वातावरणीय अवरोध शक्तियाँ काम करेगी जिस कारण स्वार्थी आदमी के शक्ति का क्षय होता रहेगा. इस कारण उसके उद्देश्य तथा आशा की पूर्ति नहीं हो पायेगी. राक्षसी स्वभाव स्वार्थ सिद्ध में बाधा पड़ने से क्रोधवश किसी को नाश करने वाले जैसा होता है. इस कारण वातावरण सहित वह स्वयं भी विशेष कम्पन्न को प्राप्त हो जाता है और ज्यादा शक्ति क्षय करता है. इसका परिणाम यह होता है कि उसकी शुभकामना की इच्छा व्यर्थ हो जाती है. मोहिनी-प्रकृति का आदमी बिना किसी कारण के दूसरों को कष्ट पहुँचाता है. इस कारण दोनों कष्ट पहुँचाने वाला और जिसे कष्ट दिया जाये वह ज्यादा कम्पन्न कर वातावरण को आन्दोलित करते है. इसके परिणामस्वरुप कष्ट पहुचाने वाले का सब ज्ञान व्यर्थ हो जाता है. यही है जैसा करोगे वैसा ही पाओगे. तुम्हारी आत्मा ऐसा यंत्र है जो निरंतर तुम्हारे अच्छे बुरे विचारों को परिणामों सहित संग्रहित करता रहता है.
गंगा कहती है :
राक्षसी, आसुरी और मोहिनी प्रकृति को धारण करने वाले अज्ञानीजन अपनी इच्छापूर्ति में इतने तल्लीन हैं कि वे मेरी प्रकृति सहित मेरी जीवंतता के आधारभूत सिद्धान्त को विस्मृत कर बैठे हैं. देखो ! तुम्हारी तरह ऑक्सीजन ही किसी भी नदी-जल की आवश्यक आवश्यकता है. उसके जल में ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन अधिक दिन तक रखने की क्षमता ही उसकी शक्ति है. नदी जल का वैसा चरित्र होता है मानो किसी योगी का होता है. जैसे एक बार सांस लिया और ध्यानस्त हो महीनों के लिये मस्त हो गया. यही गंगाजल का औषधीय-योगी गुण विश्व प्रसिद्ध है. यही होता है, बड़े बाँधों जैसे टेहरी डैम से बैरेज, भीमगोड़ा, नरौरा और फरक्का से गलत जगहों पर STP लगाने से नदियों के सेन्ड बेड शक्ति क्षेत्र को नहीं समझने से नदियों को संगम सिद्धान्त से अलग हो कर जोड़ने से और ड्रेजिंग कर ड्रेजिंग बढ़ने का कारण , रोम कूप के दबाव को नहीं समझ मालवाहक जहाज चलाना आदि. यही है गीता की व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ-ज्ञान. परन्तु
ज्ञान
धैर्युक्त इच्छा का थोड़ा सा त्याग टीहरी की जगह सूक्ष्म बांध से जैसे 18
हजार मेगावाट बिजली (टीहरी बाँध रिपोर्ट में संलग्न) नदियों में संगम सिद्धान्त से नदी गठजोड़ और बेसिन-रनऑफ-प्रबंधन
और बैंक-स्टोरेज की सहायता से मालवाहक जहाज का बिना जलगुण घटाये उसे चलाना आदि ही गंगा व्यवस्था तकनीकी है. इसे उपलब्ध करना ही भारत के आदरणीय महान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का ऐतिहासिक उद्घोष कि “माँ गंगा ने मुझे बुलाया है” को सत्यापित करेगा.