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गंगा नदी और गीता - गंगा कहती है - : बेसिन की मेड़बंदी और फ्लडप्लेन की समुचित व्यवस्था, अध्याय 8, श्लोक 25 (गीता : 25)

  • By
  • U.K. Choudhary
  • December-10-2018
धूमो रात्रिस्तथा कृष्णः षण्मासा दक्षिणायनम् ।। तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योंगी प्राप्य निबर्तते ।। गीता : 8.25 ।।

श्लोक का हिन्दी अर्थ :

जिस मार्ग में धूमाभिमानी, रात्रि अभिमानी, कृष्णपक्ष का अभिमानी और दक्षिणायन के छः महिनों का अभिमानी देवताओं द्वारा क्रमशः लिया हुआ चन्द्रमा की ज्योति को प्राप्त हो कर स्वर्ग में अपने शुभ कर्मों को भोगकर वापस आता है.

 श्लोक की वैज्ञानिकता :

किसी वस्तु से शक्ति-प्रवाह, उस वस्तु के भीतर की आणविक संरचना व्यवस्था पर आधारित होती है. उसी प्रकार तुम्हारे जीवन के समस्त कर्मों के फलस्वरूप अन्ततः रूपांतरित कोशिका का सूक्ष्म-स्वरूप तुम्हारी मृत्यु के उपरांत तुम्हारी आत्मा के साथ कार्य शक्ति-अवेषित कण के रूप में गंतव्य स्थान को निकलती है. रास्ता तथा स्थान कर्म के तहत जो साथ में रिकॉर्ड है उसका तदनूरूप होना है. सकाम कर्म-योगी कर्म के फल की इच्छा रखते हुए ईश्वर की भक्ति करने वाले पुरुष को विभिन्न शक्ति क्षेत्रों से गुजरना पड़ता है. ये क्षेत्र विभिन्न नामों के देवता से सम्बोधित किये जाते हैं. यह उसी तरह है, जैसे विभिन्न तरह के खनिज-पदार्थों से सीमेंट बनाने की पद्धति में आने वाले अनेक उपक्रमों से विभिन्न पदार्थ बनते हैं और अन्त में सीमेंट बनता है. उसी तरह विभिन्न इच्छा युक्त सकाम योगी इच्छा रूपी विभिन्न खनिज पदार्थों से युक्त हैं. इससे इनकी  मंजिल स्वर्ग प्राप्ति यथा सीमेंट प्राप्ति तक पहुँचने के लिये धूमाभियानी, रात्रि अभियानी, कृष्ण पक्ष अभियानी और दक्षिणायन के छः महिनों के अभियानियों शक्ति क्षेत्रों से क्रमशः निकल चन्द्रमा की ज्योति को प्राप्त कर स्वर्ग में अपने शुभ कर्मों का फल भोगकर वापस आना. यही है विभिन्न खनिज पदार्थों तथा इच्छा युक्त कर्म फलों का मृत योगी की आत्मा को प्राप्त होना. इनका विभिन्न शक्ति क्षेत्रों में क्रियान्वन होना परिणामस्वरुप स्वर्ग-प्राप्त होना या सीमेंट बन प्लास्टर होना तथा आत्मा को पुनः पृथ्वी पर लौटना प्लास्टर का टूट कर फिर मिट्टी में परिवर्तित होना खनिज पदार्थ का बनना, यही है दक्षिणायन के छः महीने का फल. योगी का पदार्थ से लगाव तथा शक्ति क्षय का परिणाम आगे शक्ति की जरुरत कष्ट का आना, यही है उत्तरायण और दक्षिणायन के प्राकृतिक संतुलंता की व्यवस्था.

गंगा कहती है :

दक्षिणायन के छः महीनों के हमारे बाढ़ क्षेत्र,मुख्य धारा क्षेत्र, तीव्र-प्रवाह तथा मिट्टी-बालू का कटाव या जमाव की समस्यायों के कारणों से मेरे ध्यान-स्नान-उपयोग-भोग करने वाले योगी भोगी विभिन्न कष्टों को झेलते हैं. बाढ़ में डूबे, कटाव या जमाव ये समस्यायें आती हैं तथा इन समस्याओं के रहते हुए भी दक्षिणायन का समय भूजल-संग्रहण के लिये अत्यन्त उपयोगी है. बेसिन की मेड़बंदी और फ्लडप्लेन की समुचित व्यवस्था से उत्तरायण की समस्याओं का निदान दक्षिणायन से हो सकता है.

 

 

 

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