निर्माणमोहा जितसंगदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृतकामाः । द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंगैर्गच्छन्त्यमूढ़ाः पदमव्ययं तत् ।। गीता : 15.5
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
जो झूठी प्रतिष्ठा, मोह तथा आसक्ति से मुक्त है. जो शाश्वत तत्व को समझता है , जिन्होंने अपने भौतिक काम को नष्ट कर दिया है और जो सुख-दुःख के द्वन्द से मुक्त हैं. वे ज्ञानी ही उस अविनाशी परम पद को प्राप्त करते हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
मान, मोह, आसक्ति घर्षण-शक्तियों के विभिन्न रूप हैं. ये अन्तस्थल से उत्पन्न होने वाली शक्ति-तरंगों के विभिन्न चरित्रों को, खासकर, इनकी आवृत्ति को नष्ट करते हैं. अतः इन क्रियायों से आवेग क्षीण होता रहता है और मंजिल, दूर होती जाती है.
This causes the conversation of inertia of motion into the inertia of rest : शक्ति के इस क्षय रोग के कारण हो सकता है कि लक्ष्य कभी प्राप्त ही न हो. यही है जीवन-मरण का “भ्रमर” में फँसना, इसमें घूमते-चक्रमण करते रहना और केन्द्र से दूर, विभिन्न अक्षों पर, कीड़े-मकोड़े आदि नीच योनियों में गिरते जाना है और जिन्होंने केन्द्र को लक्ष्य कर ज्ञान की प्रबलता से , मान-मोह-आसक्ति और विभिन्न द्वन्दों से अपनी आवृति को नष्ट नहीं होने देना. उस लक्ष्य को, परब्रह्म को, न्यूकलियस को, परम-शांति को, कम समय में प्राप्त कर लेता है. यही है प्रोट्रोन का न्यूट्रॉन बनना. यही है जीवन का एक मात्र उद्देश्य अनन्त शांति को प्राप्त करना.
गंगा कहती है :
प्रकृति में न मान है और न मोह और इसे द्वन्द से भी कोई मतलब नहीं है. गर्मी है तो सर्दी भी है, अतः प्रकृतिस्थ होना ही ब्रह्मस्थ होना है. यही है, समय के क्षण-क्षण का और स्थान के ईंच-ईंच का बारीकी से स्थायित्व के साथ ऐसा उपयोग करना, जिससे वातावरण की शक्ति-संतुलितता की मौलिकता आमूल रूप से अपरिवर्तित रहे. यही है, हिमालय के ऊँचे सेडिमेंट्री रॉक के तृक्ष्ण ढ़ाल पर स्थायी “माइक्रोडैम” बनाकर, सीपेज-रेट को घटाते हुए लैण्डस्लाइड को और स्थानीय-भूकम्प को रोक कर पावर जेनरेट करना. इस तरह बड़े-ऊँचे बाँध बनाकर मान-अहंकार और उससे लगाव को अर्जित नहीं करना है. अतः कहाँ छोटा, कहाँ बड़ा कार्य आदि के होने का ज्ञान स्थायी शांति यानि ब्रह्म है. सूई का कार्य तलवार नहीं कर सकती है. यही है मान प्राप्त करना, अहंकार को जन्म देना, स्थायित्व से दूर होना, निरंतर हानि-लाभ के चक्कर में रहने से दूर रहना. इस तरह वरुणा और असि की समस्या का निदान माइक्रो-सिस्टम से ही संभव है.