ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः । जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसा: ।। गीता : 14.18 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
सत्त्वगुण में स्थित पुरुष स्वर्गादि उच्चलोकों को जाते हैं, रजोगुण में स्थित राजस पुरुष मनुष्य लोक में ही रहते हैं और तमोगुणमें स्थित पुरुष अधोगति को अर्थात् कीट, पशु आदि नीच योनियों को तथा नरकों को प्राप्त होते हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
सत्त्वगुण, बुद्धिमान- व्यक्ति का गुण, संतुलितता से शक्ति का बाह्यप्रवाह करना तथा स्थिरता से शक्ति का अन्तः प्रवाह लेना होता है. इसे ही न्यूनतम् कंपनावस्था या निरंतर समतूल्य स्थिति कहा जाता है. यही है संसारिक तनाव से निर्लीप्त रहना. ऐसा तत्व ज्ञानी स्वर्ग को , स्थिरावस्था को एवम् शांति को प्राप्त करता है. जो इस संतुलितता को प्राप्त नहीं कर सके, परिस्थितियों से झुककर, सुख-दुःख से प्रभावित होते गये, उन्हें इस संसार का चक्कर बार-बार तब तक लगाना पड़ेगा, जब-तक सुख प्राप्त करने का भ्रम, उनका मिट न जाए. इससे भी नीचे वे मनुष्य होते हैं, जिन्हें इन्द्रियों की तृप्ति का अन्त ही नहीं मिलता, वे दूर्गंध-युक्त-वासना में दिन-रात डूबे रहते हैं. उन्हें अपने इन्द्री-वेगों के तहत्, गिरगिट जैसी योनियों में और नरक में जाना पड़ता है. यही संसार में रहनें की व्याख्या भगवान् श्री कृष्ण करते हैं.
गंगा कहती है...
जो प्रकृतिस्थ जिस रूप में है, वह उस रूप में अपनी आणविक संरचना के तहत है, इसे बदलना मानव अधिकार के तहत् संभव नहीं है : उदाहरण के रूप में तुम प्रकृतिस्थ किसी चीज को ले लो, किसी अनाज के एक दाने का तुम निर्माण नहीं कर सकते. इसी तरह तुम देखो, दो नदियों के के जल का रंग भी एक समान नहीं है. यही है प्रकृति का चमत्कार, इसका संरक्षण सत्त्वगुणी है, इसमें थोड़ा सा परिवर्तन, यथा, हिमालय पर, छोटा-छोटा बाँध रजोगुणी है और टिहरी जैसा बाँध और फरक्का जैसा बैराज तमोगुणी है.
As such, the work which ensures the sustainability of the Naturality of the system is Satwik, which causes the moderate changes is Rajsik and which entirely changes the character is Tamsik.
अत: बुद्धि, ज्ञान, निर्लोभ, निर्द्वन्द से किए गए कार्य सात्विक, मन, लोभ आदि से किए गए कार्य राजसी तथा इन्द्री से प्रेरित कार्य तामसी होते हैं.