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गंगा नदी और गीता - गंगा कहती है – मेरी उत्तरायण की शक्ति को जानो: अध्याय 8 श्लोक 24 (गीता: 8: 24)

  • By
  • U.K. Choudhary
  • October-01-2018
“अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम् ।। तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः” ।। गीता : 8.24 ।।

 

श्लोक का हिन्दी में अर्थ :

जिस मार्ग में ज्योतिर्मय अग्नि -अभिमानी देवता है, दिन का अभिमानी देवता है, शुक्लपक्ष का अभिमानी देवता है और उत्तरायण के छः महीने का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गये हुए ब्रह्मवेत्ता योगीजन उपर्युक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले जाये जाकर ब्रह्म को प्राप्त होते हैं.

श्लोक का अंग्रेजी में अर्थ :

Of the two paths the one is that in which are stationed the all-effulgent fire-god and the deities presiding over daylight, the bright fortnight and the six months of the northward course of the Son respectively, proceeding along it after death. Yogi, who have known Brahman, being successively led by the above gods finally reach Brahman.

श्लोक की वैज्ञानिकता :

योगी ऊपर परब्रम्ह से जुड़ने का प्रयास करते रहने वाले होते हैं. इनके ऊपर जाने की शक्तियों में उत्तरायण के छः माह का ज्योतिर्मय अग्नि और शुक्ल-पक्षीय चंद्रमा की शीतल किरणों की शक्तियां, उर्धमुखी निरंतरता से बढ़ने के कारण योगी की आत्मा को ऊपर जाने की शक्ति के साथ समन्वय स्थापित करते हैं. उत्तरोतर, छः माह के उत्तरायण के दिनों में सूर्य के बढ़ते तापीय एवं प्रकाशीय-शक्तियां योगी-आत्मा की उर्धमुखी-शक्तियों में बढोत्तरी करती रहती है. अतः उत्तरायण के छः माह के बढ़ते रहने वाली, उर्धमुखी, विभिन्न शक्तियां, योगी की आत्मा के साथ समन्वय स्थापित कर क्रम से आत्मा को ले जा कर ब्रह्म से मिलवाते हैं. यदि तुम योगी नहीं पापी हो फिर भी उत्तरायण के कारण तुम्हारी वह दुर्गति नहीं होगी जो होनी चाहिए. यही है उत्तरायण में मृत्व का महात्म, जिसका उदाहरण है, महान तेजस्वी और पराक्रमी गंगापुत्र भीष्मपितामह, जिन्होंने उत्तरायण की प्रतिक्षा में 58 दिन तक अर्जुन की शरशैया पर भीषण कष्ट झेलने के उपरान्त ही उपयुक्त-समय आने पर ही प्राणांत किया.

गंगा कहती है...

उत्तरायण के छः महीनों में सूर्य के ताप और प्रकाश शक्तियां ज्यों-ज्यों बढ़ती जाती हैं, मेरे जल की शुद्धता बढ़ती जाती है क्योंकि जल में मृदाभार कम होता जाता है अर्थात् जल का घनत्व कम होता जाता है और उसके आँक्सीजन रखने की क्षमता बढ़ती जाती है. जबकि प्रवाह गति कम हो जाती है. यह उस समय की स्थिति है मानों प्रदूषक नहीं गिर रहा है. सूर्य के बढ़ते ताप और प्रकाश के अवशोषण से हमारी जल-गुणवत्ता एवं तापीय ढाल बढ़ते जाते हैं. तापीय ढ़ाल के कारण स्नान करने वालो के शरीर का शीत-उपचार होता है तथा उसकी बहुत सी बीमारियां दूर होती है. The larger the temperature gradient between the body and the water, the larger is the rate of cellular stability, minimization of diseases. ताप-प्रकाश के बढ़ने से वाष्पीकरण और भूजल-प्रवाह के समीकरण से मिट्टी की उर्वरा शक्ति का बढना, बसंत का आना, वातावरणीय ताप-दबाब से वर्षा की स्थिति का बनना आदि आधारित है, लेकिन उत्तरायण की मेरी समस्त प्राकृतिक शक्तियों को, अवैज्ञानिक विधियों को व्यवहार में लाने के कारण जो तुम जल का दोहन कर प्रदूषक तत्वों को बढ़ा रहे हो. बिना संशोधन किये प्रवाहित कर रहे हो, वही विध्वंशकारी है. अतः मेरी उत्तरायण की शक्ति को जानो और अपने आचरण में सुधार लाओ.

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