सहस्त्रयुगपर्यन्तमहर्यद् ब्रह्माणों बिदुः ।। रात्रिं युगसहस्त्रान्तां तेअ्होनात्रविदो जनाः ।। गीता : 8.17 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
मानवीय गणना के अनुसार एक हजार युग मिलकर ब्रह्मा का एक दिन बनता है और इतनी ही बड़़ी ब्रह्मा की रात्रि भी होती है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
“युग” समय की लम्बी-अवधि में होते रहने वाले कार्य-गुण
केन्द्रस्थ रह कर या केन्द्र से दूर रहकर नियंत्रित -संतुलित कम्पन्न से या तीव्र असंतुलित
कम्पन्न से इसके आधार पर सत्य त्रेता, द्वापर,कलयुग नाम मानो ऑर्बिटलस के शांत, तीव्र या तीव्रतर और सबसे तीव्र इलेक्ट्रान
के कम्पन्न को परिभाषित करता है, उसी तरह सतयुग में लोग ईश्वर-भक्त, सत्य-आचरण करने वाले विवेकी और ज्ञानी हुआ करते थे. राजा हरिश्चंद्र के समर्पित
सत्यपरायन्ता की प्रकाष्टता सत्ययुग के महानतम चरित्र के परिचायक ऑर्बिटल
इलेक्ट्रान की भांति हैं. त्रेता में राजा रामचन्द्र ने सीताहरण समस्या को अपने प्रचंड तेज से धर्मरक्षा का उदाहरण
प्रस्तुत किया. इसे ऑर्बिटल इलेक्ट्रान के शांत स्वभाव से किया जा सकता है, भगवान श्रीराम
ने धर्मरक्षा का उदाहरण देकर पापाचार के आरंभ का संकेत दिया तथा द्वापर युग में भगवान् कृष्ण ने अपने “परब्रह्म-तेज” से कंस को मारा और बढ़ते पापाचार को मिटाकर धर्म की रक्षा करते
रहें, तथा इसका उपदेश दिया कि यह ऑर्बिटल इलेक्ट्रान जो इंटरनल और एक्सटर्नल दोनों
के दबाब को संतुलित रखता है तथा इसके समरूप है, चौथा कलयुग इलेक्ट्रान और आउटरमोस्ट ऑर्बिटल जैसा, यही है कलयुग
विभिन्न पापाचारों, दुराचारों व अशांति का
विकराल समय. इन चारों-युगों के चरित्र का चक्र हर एक जीव के जीवन के हर एक
समय में क्षण-क्षण के अन्तराल से ईसीजी की भाँति ऊपर नीचे या घटता बढ़ता चलता रहता है. विचार स्तर से तुम सत्य, त्रेता,
द्वापर और कलयुग में विचरण करते रहते हो. अवस्था के हिसाब से भी बाल्य-काल छल-प्रपंच-रहित
तुम्हारा सतयुग 10-12 वर्ष के उम्र तक
रहता है. इसके उपरान्त विकार के साथ तुम में शक्ति बढ़ती जाती और छल-प्रपंच तुम्हें सराबोर नहीं करता, तुम अन्याय से लड़ने की प्रचंड शक्ति रखते हो. यह उम्र 30-35
वर्ष तक
रह सकती है. यह तुम्हारे जीवन का त्रेता-युग हुआ. तुम शक्ति और विवेक से पाप-कर्मियों से लड़ सकते हो तथा
इसके उपरान्त 60-65 वर्ष तक तुम्हारा द्वापर का समय है और शरीर-शक्ति तुम्हारी कम हो गयी है परन्तु बुद्धि
विवेक बढ़ गया, वातावरण में पाप-कर्म बढ़ गये. तुम्हारी शिक्षा से लोग जागृत होकर पाप कर्मियों से लड़ सकते
है. तुम्हारा चौथा कलयुग काल आता है,जिसमें तुम्हारी शक्ति क्षीण हो जाती और बुद्धि विवेक के रहते हुए भी तुम पाप
वृद्धि को बढ़ने से नहीं रोक सकते और तुम चाहते हुए भी कुछ नहीं कर सकते. यह छटपटाना ही कलिकाल का लक्षण है.
गंगा कहती है :
हमारी सत, त्रेता, द्वापर और कलयुग को समझो. राजा हरिश्चन्द्र, राजा राम, भगवान
श्रीकृष्ण के समय के अतिरिक्त अभी भी मैं विभिन्न नैसर्गिक कार्यों को विभिन्न समय
में विभिन्नता से सम्पादित करते हुए आयी है. मैं अभी भी ढ़लती शक्ति और सामर्थ्य के
साथ विराजमान हूँ. युग के हिसाब से शक्ति का ढ़लना और समस्या का बढ़ना तुम एक वर्ष के
आँकड़े से समझ सकते हो. एक वर्ष में मेरे चारों युगों के स्वरूप आते हैं. जून में गंगा-दशहरा
के उपरांत मेरा सत्य-युग होता है. मेरी स्थेतिक-गतिज
और प्रदूषण नियंत्रण क्षमता क्षमताओं के संग डेलुजन-फैक्टर अधिकतम होता है, यह जून
से सितम्बर का समय मिट्टी जल शक्ति-संग्रह, प्रदूषण नियंत्रण का समय सत्य-युग है. अक्टूबर से दिसम्बर तक मेरा त्रेतायुग है तथा जनवरी से
मार्च तक द्वापर और अप्रैल, मई, जून में मेरा कलिकाल है,
इसमें डेलुजन-फैक्टर, के.ई तथा पी.ई न्यूनतम होते हैं और डिफूजन, डिसप्रेसन लेंथ
मैक्सिमम होते हैं.