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गंगा नदी और गीता - गंगा कहती है – गंगा भारत की तकदीर लिखने वाली “भारत की भाग्यविधाता” है: अध्याय 8 श्लोक 23 (गीता: 8: 23)

  • By
  • U.K. Choudhary
  • October-01-2018

 

“यत्रकाले त्वनाबृत्तिमाबृत्तिं चैव योगिनः ।। प्रयाता यान्ति तं कालं बक्ष्यामि भरतर्षभ” ।। गीता: 8.23 ।।

 

श्लोक का हिन्दी में अर्थ :

परन्तु हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन! जिस काल अर्थात मार्ग में शरीर छोड़कर गये हुए योगी अनावृति को प्राप्त होते हैं अर्थात् पीछे लौटकर नहीं आते और जिस मार्ग से गये हुए आवृति को प्राप्त होते हैं, उस काल का अर्थात् दोनों मार्गों को मैं कहुँगा.

श्लोक का अंग्रेजी में अर्थ :

Arjuna, I shall now tell you the time (path) departing when Yogis do not return and also the time (path) departing when they do return.

श्लोक की वैज्ञानिकता :

अपनी भीतरी-बाहरी निरंतरता से होते कर्तव्य के तहत विभिन्न जगहों की यात्रा विभिन्न समयों में करनी ही होती है और उसके लिए, यात्रा-विवरण, कब-किस समय में, कैसे-क्या-क्या लेकर जाना है और कहाँ-कहाँ, कैसे-कैसे रूकना, भोजन आदि करना है. यह सम्पूर्ण विवरण यदि मुख्य यात्रा और महान व्यक्तियों का तो मंथन-निर्णय में महीनों, सालों लग जाते हैं. यह यात्रा यदि महाप्रयाण के बाद की हो तो उसकी तैयारियां कब से, कहाँ के लिये, कैसे करनी है, यह जीवनभर के कार्य परिणाम के तहत स्वतः तैयार हो जाता है. यात्रा का समय, वर्ष-महीना-दिन-घंटा-मिनट-सेकंड-पल से सूर्य-चाँद-ग्रहों आदि के शक्तिप्रवाह से संरक्षित परिस्थितियों में कहाँ जाना है, यह लक्ष्य निर्धारित हो जाता है. यह उसी तरह होता है जैसे, लोह-पत्थरों से लोहा बनाने के लिये उन्हें विभिन्न, ताप-दबाब आदि के परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है. यही है जीवन के कार्यों से मानव-ओर का तैयार होना और इस ओर का, मृत्व के बाद, विभिन्न-परिस्थिति में, कार्य परिणाम की देन है.

गंगा कहती है...

अनावृति तथा आवृति पथ पर नहीं लौटने और लौटने वाले मार्गों के, विषय में नहीं सोचने के लिये मनुष्य विभिन्न शास्त्रों-पुराणों में संकलित मेरे विभिन्न- सेवा विधियों की शरण लेते हैं. इनमें महाकुम्भ, अर्द्धकुम्भ, कार्तिक-माघ-स्नान और अन्य यज्ञ-दान आदि का विवरण विभिन्न शास्त्रों में विस्तार से वर्णित हैं. जिस किसी ने भी श्रद्धा से एक बार भी कुंभ में स्नान कर लिया, उसे अनावृति या आवृति मार्ग के टिकट लेने की आवश्यकता नहीं होती. दूसरी बात यह है कि मात्र मेरी श्रद्धा से विभिन्न प्रान्तों-देशों से आने को सोचने वाले आवृति-मार्ग के कष्टों से निवृति हो जाते हैं. अब मेरे प्रति यह अगाध-श्रद्धा समाप्त होती जा रही है, इसका मात्र कारण तुम हो, प्रयाग के महाकुम्भ में भी मेरी दशा, सूखती-धारा और काला-जल बहुत ही दुःखद और दुर्भाग्यपूर्ण है, तुम यह क्यों नहीं समझते. मेरा स्नान, मात्र स्नान नहीं अपितु यह संस्कार को बदलने वाला, चेतना को जागृति करने वाला और आत्मज्ञान को प्रस्फुटित एवं इसे संरक्षित करने वाला है. अत: गंगा भारत की तकदीर लिखने वाली “भारत की भाग्यविधाता” है.

 

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