अब्यक्ताद् ब्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमें ।। रात्रागमें प्रलीयन्ते तत्रैवाब्यक्तसंग्यके ।। गीता : 8.18 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
ब्रह्मा के दिन के शुभारंभ में सारे जीव अव्यक्त अवस्था से व्यक्त होते है और फिर जब रात्रि आती है तो वे पुनः अव्यक्त में विलीन हो जाते हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
“ब्रह्मा” समस्त-जीवों के जन्म-मृत्यु स्त्रोत से परिभाषित होते हैं. ये जन्म और मृत्यु शक्ति को पदार्थ में और पदार्थ को शक्ति में रूपांतरित करते है. ब्रह्मा के जग में जीव का जन्म यह परिभाषित करता है कि शक्ति का रूपांतरण कार्य पदार्थ में सौर्य ऊर्जा की सहायता से ही होता है, अतः इससे यह निरूपित होता है कि समस्त जीव की उत्पत्ति का स्त्रोत मात्र सूर्य ही है, सूर्य-किरणों की तीक्ष्णता दिन और समय के अन्तराल से निरंतरता से बदलते है, यही जीवों की विभिन्नता का धोतक है तथा समस्त जीवों के मौलिक कार्यों, शक्तिप्रवाहों, कोशिका-विघटन में सूर्य की फोटोन-रे विभिन्न रासायनिक क्रियाओं के कारण होते हैं, यही है ब्रह्मा के जग में जीवों की उत्पत्ति का होना. यही है ब्रह्मा के दिन-काल में अव्यक्त शक्ति का
व्यक्त पदार्थ में रूपांणतरंण होना. रात्रि के समय में दिन में कार्य करने व शक्ति-प्रवाह करने के तहत टेढ़ी-मेंढ़ी हुई कोशिका अपने मौलिक-स्वरूप में लौटकर पुनः शक्ति प्राप्त कर सकती है, यही सोने की आवश्यकता को परिभाषित करता है. यही है ब्रह्मा के रात्रि में व्यक्त का अव्यक्त होना. दिन में अव्यक्त को व्यक्त और रात को व्यक्त को अव्यक्त,
क्रिया-प्रतिक्रिया और अन्तः एवं बाह्य-प्रवाह के संतुलन की व्याख्या करता है. यही है समग्र शक्तियों और पदार्थो के अन्तः एवं बाह्य प्रवाह का अलग-अलग योग जो शून्य
होता है. यही है पूरे ब्रमाण्ड में न्यूट्रॉन, शिव से उद्भव प्रोट्रोन और एलेक्ट्रोन की बराबर संख्या का खेल, शिव का तांडव और शिव का एलेक्ट्रोन-न्यूट्रोन-प्रोट्रोन का त्रिशूल और ब्रह्मा का दिन और रात.
गंगा कहती है :
ब्रह्मा के कमंडल, विष्णु के चरण तथा शिव के मस्तक इन समस्त स्थानों पर मैं तुम्हारे लिए अव्यक्त हूँ. इन जगहों पर मैं पूर्णतया शक्तिस्वरूपा हूँ परन्तु पृथ्वी पर व्यक्त रूप से जल शक्तिप्रवाह धारा
तथा अव्यक्त रूप से अनन्त जीवों का जन्म तथा पालन-पोषण करने वाली हूँ. मेरे बेसिन द्वारा सौर्य-ऊर्जा का अवशोषण विश्व में सबसे ज्यादा होने के कारण इसकी विविधता
संख्या मात्र -गुण की शक्ति सर्वोत्तम है. ब्रह्मा के शरीर जैसे, मेरे शरीर में जीवों का बाह्य एवं अन्तः प्रवाह का संतुलन नहीं है. यही है अन्तः और बाह्य प्रवाह के संतुलन से उत्पन्न समस्या का निरंतरता से बढ़ने का कारण. इसका दूसरा कारण क्रिया के विरुद्ध प्रतिक्रिया का नहीं होना है. विभिन्न कार्य जो हुए है, जो हो रहे हैं या जो होंगें, इनके परिणाम का सही आंकलन का नहीं होना, असंतुलिता का परिणाम है.