“पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया ।। यस्यान्तः स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम्” ।। गीता: 8.22 ।।
हे अर्जुन! वह शाश्वत, अनदेखा, सर्वोच्च पुरुष, जिसमें सभी प्राणियों का निवास होता है और जिनके द्वारा यह सब प्रसारित किया जाता है, केवल विशिष्ट भक्ति के माध्यम से ही प्राप्त होता है.
श्लोक का अंग्रेज़ी में अर्थ :
Arjuna, that eternal un- manifest supreme Purusa in whom all beings reside and by whom all this is pervaded is attainable only through exclusive Devotion.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
सम्पूर्ण-संसार में निष्काम-भाव से व्याप्त सिर्फ न्यूट्रोन है और सम्पूर्ण प्राणियों की कोशिका के अन्दर अवस्थित एटम में केन्द्रस्थ आत्मरुप प्रोट्रोन के साथ परमात्मरूप, सबल, न्यूट्रोन विराजमान है. कोशिका-जीवात्मा की हर क्रिया-कलाप को नियंत्रित और व्यवस्थित करती रहती है. इस परमात्म-स्वरुप न्यूट्रोन को प्रबल एवं शक्तिशाली तब बनाया जा सकता है, जब इसकी संख्या को बढ़ाया जाये. इसकी संख्या तब बढ़ सकती है, जब इच्छारुप एलेक्ट्रोन को न्यूकलियस में उपस्थित जीवात्मा प्रोट्रोन से मिला दिया जाये. यह परमात्मा को यानि न्यूट्रोन को इच्छारूपी एलेक्ट्रोन से मिलाना, एलेक्ट्रोन से प्रोट्रोन को मिलाते रहने से न्यूट्रोन की संख्या को बढाना तथा अनन्यभाव से परमात्मा के समीपस्थ होते जाना . जब एवं जिस क्षण, सम्पूर्ण इच्छा से समस्त-एलेक्ट्रोन, न्यूक्लियस के प्रोट्रोन से मिल कर न्यूट्रोन बन जायेगा. उसी क्षण परमात्मा की प्राप्ति हो जायेगी और यही है विष्णु लोक की प्राप्ति का होना.
गंगा कहती है...
तुम मेरी आत्मा और परमात्मा की तकनीकी-समरूपता के व्यवहार को समझो. प्रोट्रोन का बढ़ना, एलेक्ट्रोन के बढ़ने और कम्पन के बढ़ने को सम्बोधित उसी रुप से करता है, जिस तरह हमारे विभिन्न ढ़ालों को बढ़ने से होता है और जिस तरह स्थिरता का सूचक न्यूट्रोन है, उसी तरह हमारे विभिन्न ढ़ालों का कम होना होता है. इसी से तुम अपने समस्त कार्यों का विश्लेष्ण करो. टिहरी जैसे
बड़े बांध से
तुमने 230 मी. जल स्तर ढ़ाल को बदला.
इससे जल वेग, घनत्व-तल,
किनारे और सतही बाँध के उपर और नीचे के ढ़ालों में लगभग 2000
कि.मी. के
अंतर्गत बदलाव आया है. इससे समस्त मिट्टी, जल, वायु, तापमान, आद्रता आदि के भौतिक-रासायनिक अवयवों के ढ़ालों में न जाने कब तक परिवर्तन आता रहेगा और बाढ़, कटाव, प्रदूषण आदि की समस्याएं बढ़ती रहेंगी. अत: हर कार्य करने से पहले तुम सोचो कि तुम कौन-कौन से ढाल बढा रहे हो? यह भी सोचो कि कैसे विभिन्न ढालों में न्यूनतम परिवर्तन किया जा सकता है.
यही होगा तुम्हारा संतुलित एवं दीर्घकालीन प्रारूप, परन्तु यह सब तो तुम कभी करते ही नहीं हो.