इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे ।।ग्यानं बिग्यानसहितं यज्ग्यात्वा मोक्ष्यसेअ्शुभात् ।। गीता : 9.1 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
श्री भगवान बोले यह अत्यंत गोपनीय विज्ञान सहित ज्ञान दोष दृष्टि रहित तेरे लिए तो मैं फिर अच्छी तरह से कहूँगा, जिसको जानकर तू जन्म-मरण रूप संसार से मुक्त हो जायेगा.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
दोष दृष्टि रहित भक्त निर्विकार-भाव से सेवा, एकमात्र शक्तिप्रवाह भक्ति है. इस आत्मीय-भाव के व्यक्ति के साथ ही पूर्ण समन्वय स्थापित कर उसे परम गोपनीय तत्व-ज्ञान, पूर्ण शांति प्रदायिनी ज्ञान दिया जा सकता
है. यही है भक्ति-योग. विज्ञान का ज्ञान होना, अपने ज्ञान को परब्रह्म के सम्पूर्ण ज्ञान जिसे विज्ञान कहते है उसमे मिलाना, यही है भक्ति योग. यदि ज्ञान अपना ज्ञान और विज्ञान में परब्रह्म ज्ञान में पूर्ण तालमेल नहीं होगा तो यह है ज्ञान योग. यहां ताल-मेल का स्तर इससे नीचा है. अत: अत्यन्त गोपनीय विज्ञान,
ज्ञान भक्ति योग वाले को ही मिलता है.
गंगा कहती है :
दोष-दृष्टि रहित भक्त ही गोपनीय विज्ञान के साथ ज्ञान से युक्त हो सकता है, यही समन्वय स्थापित करने की तकनीक है. यदि तुम दृष्टि दोष युक्त हो तो समस्या का निदान कभी नहीं हो सकता है. यह इसीलिए है कि यदि विज्ञान हमारे शरीर के बिना सम्पूर्ण ज्ञान या स्थानीय ज्ञान के आधार पर किसी कार्य को करता है तो यह तुम्हारा साधारण कर्म योग है. उदाहरण के लिए तुम बाँध बनाते हो यह स्थानीय आँकडे पर ही आधारित होता है. यही कारण होता है कि बाँध के ऊपर और नीचे का क्षेत्र विशेष रूप से प्रभावित होता है. अत: तुम ज्ञान योग का उपयोग नहीं करते हो, यदि तुम भक्तियोग का उपयोग करते हो तब तुम किसी कार्य को करने से पहले उस कार्य का प्रभाव पूरे शरीर पर क्या पड़ेगा, इसको ध्यान में रख कर करते हो, अत: तुम्हारा कार्य ज्ञानी हो सकता है परन्तु वैज्ञानिक नहीं.