शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते ।। एकया यात्यनावृत्तिमन्ययाबर्तते पुनः ।। गीता : 8.26 ।।
श्लोक का हिन्दी में अर्थ:
वैदिक मतानुसार इस संसार में प्रयाण करने के दो मार्ग
हैं, एक प्रकाश का दूसरा अंधकार का. जब मनुष्य की आत्मा प्रकाश के मार्ग से जाती है तो वह वापस नहीं
आती है, किन्तु अंधकार के मार्ग से जाने वाला पुनः लौटकर आता है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
शाश्वते-मते, सनातन माने जाने वाले वैदिक मतानुसार मार्ग वह है जो अनादि- काल से सर्वमान्य रास्ता वह है जो व्यव्हार नियम कार्य में उपयोग होता आ रहा है. सनातन यह पूर्वकालीन मार्ग,
पगदंडी सत्यापित करता है, इतिहास बनाता है और कहता आ रहा है कि इस पर चलने वाले मानव
न्यूनतम कम्पन्नावस्था में अपने शक्ति क्षय को बचाते हुए आसानी से कार्य सम्पादित करते
आ रहें है. यही पूर्वकालीन फूटपाथ आज नेशनल हाईवे है. यही कल्चर और सिविलाइज़ेशन हो
गया है. यही फेनोटिक करैक्टर अब जेनेटिक करैक्टर बन गया, अतः यह सनातन
मार्ग न्यूनतम घर्षण शक्ति का शांति-पथ होता है. इसी सनातनी सिद्धान्त के तहत शुक्ल
अर्थात् देवयान मार्ग पर जाने वाले मृत योगी की आत्मा उसकी समर्पित इच्छा के कारण पुनः
जन्म नहीं लेती है, और कृष्ण अर्थात् पित्रृयान मार्ग पर चलने वाले मृत योगी की आत्मा
फल-इच्छा पुनर्जन्म को प्राप्त करती है.
गंगा कहती है :
मेरे लिये सबसे महत्त्वपूर्ण सनातन मार्ग था मात्र-श्रद्धा,
इसी के तहत मुक्ति-सिद्धी-धन दौलत, रोगव्याधि समस्त समस्यायों निदान मुझ से मातृवत
स्नेह था. लोगों में पवित्रता और मेरी रक्षा की तत्परता के साथ प्रगाढ़ आत्मीय-प्रेम
था. बाराणसी में बालू-क्षेत्र से बालू का खनन सनातनी था, लेकिन कछुआ-सेंचुरी से बालू-खनन
बंद हो गया. गर्मी की अधिकतम गहराई 16 मी.से बढ़कर 23 मी. किनारे के पास ही घाटों का कटना धसना. अस्सी-नदी सनातनी रूप से अस्सी-घाट पर
संगम करती है. उसे वहाँ से हटा कर 90 डिग्री पर गलत जगह और तरीकों से गंगा से जोड़ कर मिट्टी
जमाव से गंगा को घाट से अलग होते जाने की समस्यायों का विकराल होते जाना है. इस तरह
की हजारों सनातनी परम्पराओं के नष्ट होने से लोगों के शुक्लपक्षी चरित्र कृष्णपक्षी
बनते चले जा रहें है.