STP से गंगा में निस्तारित अवजल के स्थान से आउटफॉल साइट के प्रदूषण
के फैलाव को डायल्यूशन, डिफ्यूजन और डिसपर्सन की मॉडलिंग कर उसे नहीं समझना तथा
गंगा जल को काला और दुर्गंधयुक्त होते रहना ही गंगा की समस्या है.
वाराणसी का क्षेत्र गंगा के नदोत्तर किनारे के आरंभ से शुरू होता है. गंगा मोड़ का इस बाहरी किनारे की तरफ गंगा जल की धारा, जल-वेग केंद्र प्रसारी बल के कारण न्यून होने लगता है. यह स्ट्रीमलाइन डायवर्सन जोन होता है और गंगा की अधिकतम गहराई मध्य से नदोत्तर किनारे की दिशा में खिसकने लगती है. इस घटते वेग को शहर से आने वाले नाले STP से निस्तारित किया गया अवजल का आवेग और अधिक न्यून करता है, इस कारण प्रदूषण किनारे-किनारे रेंग कर आगे बढ़ता हैं. यही है, भगवानपुर STP तथा इसके ऊपर के नाले तथा रमणा STP से होने वाले अवजल को गंगा में निस्तारित होने का प्रभाव. ये सारे STP और नाले का अवजल वाराणसी में गंगा के विभिन्न घाटों के बी.ओ.डी भारों को दिसम्बर से जून तक बढ़ाते हैं और डी.ओ को घटाते है. यह गंगा जल को काला तथा दुर्गंधयुक्त करता रहता है. यही है, अस्सीघाट पर भगवानपुर STP के विशेष कारण से भयावह प्रदूषण का कारण और इसका दशाश्वमेध घाट की ओर फैलते जाना. इन परिस्थितियों का आंकलन डायल्यूशन डिफ्यूजन डिसपर्सन मॉडल से लेबोरेटरी में आसानी से देखा जा सकता है. अत: गंगा में किसी स्त्रोत से अवजल निस्तारण से पहले मॉडलिंग करने की आवश्यकता है, इसका नहीं किया जाना और अपनी इच्छा से अवजल का निस्तारण कर देना गंगा की भयावह समस्या है.