हिमालय के लगभग एक ही क्षेत्र से 60-85 कि. मी. के अन्तराल से प्रस्फुटित होने वाली गंगा-यमुना-सोन आदि नदियाँ, उद्गम के समय विभिन्न ऊँचाइयों से, जल के रंग से, नदी की बरक़रार मोरफोलॉजी से, बालू-मृदा आदि के विभिन्न चारित्रिक गुणों से, हाईड्रोलिक-ग्रेडिएंट से, फ्लड-प्लेन और बेसिन के चारित्रिक गुणों से अलग-अलग रहते हुए निर्धारित जगहों पर, शक्ति संतुलन के सिद्धांत के तहत ही संगम करते हैं. नदी के समस्त कार्य समस्या और इसके समाधान “न्यूनतम कार्य सिद्धांत” के तहत ही सम्पादित होते हैं. अतः नदी विज्ञान गूढ़ रिसर्च का विषय है. इस रिसर्च-उपलब्धि पर ध्यान नहीं देना, इसे तिरस्कृत करना गंगा की बहुत बड़ी समस्या है.
“द रिवर सेंड-बेड एण्ड फ्लो एनर्जी फॉर द वेस्ट वाटर-मैनेजमेंट”, वर्ष 2012 का आई.आई.टी. बी.एच.यू का पी.एच.डी थेसीस है. 4 वर्ष से ज्यादा समय का यह कार्य होने से पहले लगभग 35 एम. टेक के छात्र और अन्य दो पी.एच.डी. के छात्र एक ही गाइड, प्रो. यू. के . चौधरी के मार्गदर्शन में रिसर्च कर चुके हैं. सैकड़ों आर्टिकल्स, रिपोर्ट,पेपर्स प्रकाशित हो चुके हैं. 35 वर्षों से भी ज्यादा जिन्हें रिवर इन्जीनियरिंग पढाने का अनुभव है और जो 1974-75 में आई.आई.टी. बम्बई से रिवर ई. विषय में पी.एच.डी की है, वह गंगा व्यवस्था पर विभिन्न सुझाव दे रहे हैं, जिन पर सरकार विचार करना, मंथन करवाना आवश्यक नहीं समझती है. यह देश, गंगा एवम् अन्य नदी-सिस्टम के लिये भयावह समस्या है.