आदेशकाले यद्यानमपात्रेभ्यश्च दीयते । असत्कृतमवग्यातं तत्तामसमुदाहृतम् ।। गीता : 17.23 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
तथा जो दान किसी अपवित्र
स्थान में अनुचित समय में किसी अयोग्य व्यक्ति को या बिना समुचित ध्यान तथा आदर से
दिया जाता है वह तामसी कहलाता है.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
अपवित्र स्थान जहाँ पर
शरीर विशेष कम्पनावस्था को प्राप्त करें. अनुचित समय
अथार्त वह समय जिसमें शरीर से या शरीर में पदार्थ या शक्ति का विशेष रूप का अन्तः
या बाह्य प्रवाह होता हो यथा भोजन या मल त्याग करते समय में आदि अयोग्य व्यक्ति वह
है जो दान-पदार्थ का महत्व नहीं समझते उससे
शांति-प्राप्त नहीं करता हो या उस व्यक्ति को बिना आदर से उसके कम्पनावस्था
को बिना दूर किए दिया जाता हो, तामसी-दान होता है. अतः यह दान, शक्ति से पदार्थ को
और पदार्थ से शक्ति को समय-स्थान-व्यक्ति से संतुलित नहीं करता. यही है, दान कर्तव्य
उद्देश्य की पूर्ति का नहीं होना.
गंगा कहती है :
भयावह भूस्खलन से विश्व के दूसरे स्थान पर अधिकतम सेडिमेन्ट लोड ढ़ोने वाली गंगा पर बढ़ते हुए ऊंचे बाँधों के निर्माण के परिणाम को नहीं देखना, गंगा के ऊँचे होते बेड लेवल के परिणाम से वाराणसी-पटना-भागलपुर-फरक्का आदि जगहों पर गंगा के कोर्स को बदलते नहीं देखना, डैम-जलाशय के डेड-स्टोरेज के होते काला और गाढ़ा प्रदूषित जल को नहीं देखना, बाँध निर्माण से हो रहे तामसी-दान को नहीं देखना और समझना है.
1.’असि’: मटियामेट हुए और नदी से नाली बनी देश की सैकड़ों-हजारों नदियों-जलकुण्डों के लुटे बेसीन अवसादों से भरे उनके पेट और डुब चुके उनके भूजल स्त्रोत से सम्पूर्णता से विलुप्त हुए जल स्त्रोतों को सम्बोधित करती है.
2.’बरूणा’, सूखती-सिमटती, मल-जल वाहक बनती, ठोस-अवसादों से पटती और जनवासाओं से जमती उनके नतोदर-उन्नतोदर फ्लड-प्लेन देश के समस्त छोटी-नदियों की लुटती व मिटती जा रही जल स्त्रोतों को सम्बोधित करती है.
3. ‘गंगा’: अपने आप को और ब्रह्मपुत्र-यमुना-कोशी-गंडक-सोन आदि देश की समस्त बड़ी नदियों के सूखते दूषित होते जल व बढ़ते बालू जमाव, कटाव और उजड़ते हजारों गाँव और ‘ग्रेट प्लेन ऑफ़ इन्डिया’ सहित अन्य नदियों के बेसीन को सम्बोधित करती है.
अतः असि-बरूणा-गंगा की लुप्त हुई व लुप्त होती जा रही और भविष्य में लुप्त होने की परिस्थिति की में ऐसा लगता की ‘महादानी-महारानी-प्रकृति’ सूखती-सिमटती-काली-कलूटी-प्रदूषित रहती है व भीख माँगने वाली अपने ही जल के लिए तड़पने वाली भारत के समस्त जल स्त्रोतों को जल वर्षा रूपी ‘तामसी-दान’ कर रही है. यही है, प्रकृति का बदलते जाना, प्रकृति का ‘तामसी-रूप’.
गीता (2.66) प्रतिष्ठित करती है कि इन्द्रीय भोग से निर्लिप्त निश्चयात्मि का बुद्धि के तहत देश और संसार हित अनेकानेक भावनाओं को अन्तःकरण में रखने वाले देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी शांति और सुख प्रदायक स्थितप्रग्य हैं.
सियोल शांति पुस्कार, रूस
का सर्वोच्च ‘द आर्डर ऑफ़ सेंट एंड्रयू
द अपाँसल सम्मान’ के अतिरिक्त कई समृद्धशाली देशों सें सम्मान उनसे आपसी
सम्वन्ध मजबूत और स्थिर करते विश्व शांति की दिशा में विगत 4-5 सालों में महान योगदान करनें में प्राप्त करते राष्ट्रीय
स्तर के ‘आयुष्मान भारत, ट्रिपल-तलाक, स्वयं-प्रभा, आदिवासी उत्सव आदि
अनेक श्री नरेंद्र मोदी जी के मौलिक ‘अन्तःकरण की
भावनाओं की प्रखरता की संपुष्टि करते हैं और वे संयमित इन्द्रीय मन से प्राप्ति भावनाओं
से परिपूर्ण स्थित प्रग्य हैं, इसे प्रतिष्ठित करते हैं.