अनुबन्धं क्षयं हिंसामनपेक्ष्य च पौरुषम् । मोहादारभ्यते कर्मं यत्तत्तामसमुच्यते ।। गीता : 18.25 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
जो कर्म मोहवश शास्त्रीय
आदेशों की अवहेलना करके तथा भावी बन्धन की परवाह किए बिना या हिंसा अथवा अन्यों को
दुःख पहुँचाने के लिए किया जाता है, वह तामसी कहलाता है.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
मोह, चुम्बकीय-आकर्षण शक्ति स्वरूप एक शरीर को दूसरे से दूसरे को
तीसरे से इस तरह यह अदृश्य प्रवल गाँठों की श्रृंखला महा शक्तिक्षय कारक, आत्मा का
प्रबल बंधन, नीचे ढुलकाने वाला, नरक में ले जाने वाला, बुद्धि नाश का शास्त्र के विपरीत
चलने का आगे के अपने भविष्य को नहीं देखने का
‘तामसी-कर्म’ है.
(34) स्थित-प्रग्य
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी भोग और ऐश्वर्य से अनासक्त महान कर्म-योगी
हैं?
गीता (2.42-44) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं - हे अर्जुन ! जो भोगों में
तन्मय हो रहे हैं, जो कर्म फल के प्रशंसक वेद वाक्यों में ही प्रीति रखते हैं, जिनकी
बुद्धि में स्वर्ग ही परम प्राप्य वस्तु है और जो स्वर्ग से बढ़कर दूसरी कोई वस्तु
ही नहीं ऐसा कहने वाला है वे अविवेकी जन जिस पुष्पित अर्थात दिखाऊ शोभायुक्त वाणी
को कहा करते हैं, जो कि जन्मरूप कर्म फल देने वाली एवं भोग तथा ऐश्वर्य की
प्राप्ति के लिए नाना प्रकार की बहुत सी क्रियाओं का वर्णन करने वाली हैं. उस वाणी
द्वारा जिसका चित्त हर लिया गया है, जो भोग और ऐश्वर्य में अत्यंत आशक्त है. उन
पुरुषों की परमात्मा में निश्चियात्मिका बुद्धि नहीं होती. यही कवि जगजननी माँ के श्रीचरणों में प्रणाम कर कहता है – माँ ! आज बैठक थी मैं कुछ विशेष बोला नहीं सबके
मध्य में भी मैं अकेला ही था. मात्र अकाल की चर्चा में सहभागी बना हूँ. खैर, मेरे
अनुसार चर्चा बड़ी सटीक थी ऐसा कुछ लगा नहीं. मेरी प्रस्तुति में वेदना, करूणा
परिस्थिति का सामना करने की तीव्र आकांक्षा, उत्कण्ठा आदि भावों का प्रगटीकरण भी
नहीं था. हृदय मंदिर में तो मेरे इन दुःखी बंधुओं के लिए असह्य वेदना, फिर भी ऐसा
कैसे होता है? क्या सच में मनुष्य अपने बारे में विचार करता है उसी पल
उसका वाह्य जीवन संकुचित होने लगता होगा? माँ तेरी कृपा से
मैं सर्वजन के प्रति अपने समभाव को किसी भी प्रकार से खोना नहीं चाहता हूँ. (साक्षीभाव पुस्तक , पृष्ठ 71 ; 10.12.1986 को श्री नरेन्द्र मोदी जी की हृदयस्थ बातें ) इतने विशाल
हृदय के हैं ‘न भूतो न भविस्यति’ भारत के महान कर्मयोगी
प्रधानमंत्री श्री मोदी.
गंगा कहती है :
‘तामस कर्म’ वह है जो परिणाम, हानि, हिंसा और सामर्थ्य को न विचार कर केवल अज्ञान से अपने स्वार्थ-सिद्धि मात्र के लिए किया जाए. यही है तुम्हारा, मेरे शरीर में मल जल विसर्जन का मूर्खतावश कार्य करना. महामूर्ख गांव का झोलाछाप डॉकटर भी यह जानता है कि विषरूप दवा को ही सही शरीर में कितना कहाँ और कैसे इन्जेक्ट किया जाए. इस ज्ञान का नहीं होना और STP के अवजल सहित अन्य समस्त मलजल स्त्रोतों नालों को उन जगहों और उन विधियों से वाराणसी में गंगा के नतोदर किनारे से जोड़ना जो घाटों पर जल में बजबजाहट पैदा करते जल को स्नान करने लायक नहीं रहने दे ‘तामस कार्य’ है.