विधिहीननमसृष्टान्नं मंत्रहीनमदक्षिणाम् । श्रद्धाविरहितं यग्यं तामसं परिचक्षते ।। गीता : 17.13 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
शास्त्र विधि से हीन, अन्नदान से रहित बिना मंत्र के, बिना दक्षिणा के और बिना श्रद्धा के किए जाने वाले
यज्ञ को तामस यज्ञ कहते हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
शास्त्र विधि से हीन
शक्ति का पदार्थ में और पदार्थ को शक्ति में रूपांतरित करनें की तकनीक का उपयोग का
नहीं होना है. मंत्र हीन शक्ति तरंगों से कोशिका को विशेष रूप से रेखांकित और संघनित
नहीं होना है. अन्नदान से रहित विभिन्न
कार्यों को करने के लिए विभिन्न सामग्री के साथ उस विधि की तकनीकी की आवश्यकता होती है, जो लक्ष्य तक पहुंचा सके. अन्नदान इन सामग्रियों में एक है, जिनके दान का अर्थ मानों भूख की ज्वाला को थरथराहट को
न्यून करना, किसी भूखे को भोजन देने जैसा है, अन्नदाता को आत्म संतुष्टि करते हुए उसकी कोशिकाएं सीधी और
संघनित करते उसे शक्तिशाली बनाने का नहीं होना है. बिना दक्षिणा के यज्ञ कार्य करवाने
वाले की शक्ति का व्यय होता है. उनकी कोशिका टेढ़ी हो जाती है जिसे पदार्थीय शक्ति
द्वार सीधा किया जाता है. यह पदार्थ ‘दक्षिणा’ कहलाता है. इसको यज्ञ के
उपरांत नहीं देना है. बिना श्रद्धा के यज्ञ कार्य अव्यवस्थित कोशिकाओं द्वारा
निम्न स्तरीय कार्य है.
गंगा कहती है :
जिस तरह अन्नदान जैसा महादान मानव के विभिन्न कम्पनावस्थाओं को दूर करता है, उसी तरह मेरे उन्नतोदर बाढ़ क्षेत्र का विशाल बालू भंडार, बालू निस्तारण का क्षेत्र है. यह विपरीत ढाल का उच्च घर्षणीय क्षेत्र नतोदर किनारे के कटाव क्षेत्र को दिन प्रतिदिन बढ़ाते गांव के गांव को उजड़ते उत्तराखंड सहित पहाड़ी और समतल क्षेत्र में बाढ़ के कारण होते रहता है. नदी की इन समस्याओं के मौलिक निदान को नहीं देख स्पर्श आदि के उपयोग से कटान की व्यवस्था करना और इसे और बढाना ही ‘तामस यज्ञ’ है.