दुःखमित्येव यत्कर्म कायक्लेशभयात्त्यजेत् । स कृत्वा राजसं त्यागं नैव त्यागफलं भवेत् ।। गीता : 18.8 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
जो व्यक्ति नियत कर्मों
को कष्टप्रद समझ कर या शारीरिक क्लेश के भय से त्याग देता है उसके लिए कहा जाता
हैं कि उसने यह त्याग रजोगुण में किया है. ऐसा करने से कभी त्याग का उच्च फल
प्राप्त नहीं होता.
श्लोक की
वैज्ञानिकता :
नियत कर्म को कष्टप्रद
समझना शरीर की स्थिरावस्था को गत्यावस्था में लाने में शक्ति के विशेष अवशोषण होने
को परिभाषित करता है. इसका अर्थ है शक्ति ज्यादा लगाई और कार्य हुआ कम. अतः यह
शक्ति क्षय द्योतक, राजसी त्याग कहलाता है.
(20) स्थित-प्रग्य
भारतके प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी कर्म-योगी है?
गीता (5.18-19) , कर्म-योग की शिक्षा में भगवान श्रीकृष्ण बतलाते
हैं कि जो समदर्शी है अर्थात् जिसके लिए सभी बराबर है उनके द्वारा इस जीवित अवस्था
में ही सम्पूर्ण संसार जीत लिया गया है क्योंकि परमात्मा निर्दोष और सम है. इसी
निर्दोष आत्मस्त भाव में कवि कहता है ‘ माँ..मुझे शंका-कुशंका, आशा-निराशा, भय-चिंता,
सफलता-असफलता, पाना या खो देना सर्व भावों से
मुक्त कर’. ‘साक्षी भाव कवि की कविता की भाव टैगोर की प्रार्थना जैसा है,
अंतर मम विकसित करो अंतरतर है, निर्मल करो, उज्जवल
करो, सुन्दर करो हे, जाग्रत करो, उद्यत करो, निर्भय करो हे, मुक्त करो हे सबके
संगे, मुक्त करो हे बंध, चरण पद मे मम चित्त निःस्पंदित करो हे, नंदित करो, नंदित
करो, नंदित करो हे ‘(साक्षीभाव,
पेज-13 ). यही हैं कवि भारत के प्रधानमंत्री, श्री नरेन्द्र मोदी के
अन्तःकरण की सर्व कल्यानार्थ निर्मल आत्म प्रेम धारा. अतः ये ‘स्थित-प्रग्य’ रहते ‘कर्म-योगी’ हैं.
गंगा कहती है :
जीवंत को ही जीवन तथा शरीर धारी को ही शरीर देने की शक्ति होती है. इस शक्ति स्त्रोत से भक्ति स्त्रोत के समागम का नहीं होना श्रद्धा विहीनता का परिचायक टेक्नोलॉजी की अज्ञानता ही ‘रजोगुणी’ होने का परिचायक है. अतः तुम महान स्वार्थी रजोगुणी हो.