यत्तु कृत्स्नवदेकस्मिन्कार्यें सक्तमहैतुकम् । अतत्त्वार्थवदल्पं च तत्तामसमुदाहृतम् ।। गीता : 18.22 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
और वह ज्ञान जिससे मनुष्य
किसी एक प्रकार के कार्य को जो अति तू तुच्छ है सब कुछ मान कर सत्य को जाने बिना
उसमें लिप्त रहता है, तामसी कहा जाता है.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
तुच्छ कार्य करने के ज्ञान
की जड़ता दुर्व्यवस्थित कोशिका की अकर्मण्यता से निश्चितता से होते रहते शक्ति प्रवाह
और इससे हो रहे कार्य अपने आप में अकेला दुनिया से कोई मतलब नही मुख्यतया जन्मजात,
जेनेटिक होता है और कभी-कभी दुर्व्यसन से यह फेनोटिक हो जाता है. यही है टेढ़े-मेढे
स्थिरावस्था की शक्ति प्रवाह से होते तुच्छ कार्य तामसी-कार्य का होना.
(31) स्थित-प्रग्य
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी भक्तियोग आधारित कर्मयोगी हैं. उनकी
भीतरी प्रचंड भक्ति बाहरी तूफानी शक्ति है?
गीता (12.3-4) भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं जो लोग अपनी
इन्द्रियों को वश में करके तथा सब के प्रति समभाव रखकर परम सत्य की निराकार कल्पना
के अन्तर्गत उस अव्यक्त की पूरी तरह से पूजा करते हैं. जो इन्द्रियों की अनूभूति
से परे हैं सर्वव्यापी हैं, अकल्पनीय हैं, अपरिवर्तनीय हैं अचल तथा ध्रुव हैं वे
समस्त लोगों के कल्याण में संलग्न रहकर अखंड-आनंद की अनुभूति प्राप्त करते हैं. इसी
इन्द्रिय अनूभूति से परे हैं ‘कवि’ और यही भक्ति है कवि की निराकार रूपिणी, सर्वशक्तिशालीनी
जगजननी माँ से. कवि उनके श्री चरणों में प्रणाम कर कहता है ‘मुझे तो जगत को भावनाओं से जोड़ना है. मुझे तो सबकी वेदना की
अनूभूति करनी है, मुझे तो अपनेंपन की अस्तित्व की आहुति देनी है. तभी तो कहता हूँ मुझे
ऐसी तीव्रता सर्वकाल के लिए क्यों नहीं मिलती? देख न माँ! प्रतीक्षा के पलों की बात भी मेरे अंतर्मन को
कितना विह्वल कर रही है. माँ, प्रभु प्रदत्त प्रेम-पुन्ज यदि मर्यादित ही होता है
तो मैं कहाँ-कहाँ बाँट सकूंगा? कितने-कितने प्रिय स्वजनों को उससे सरावोर कर
सकूंगा? (पुस्तक-साक्षीभाव): ये
हैं ‘भक्ति-योग’ के जड़ की असीम गहराई रखने
वाले हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी अतः यही भीतर की भीषण भक्ति
उनकी प्रचंड बाहरी शक्ति है जिसे कोई ‘टस से मश’ नहीं कर सकता.
गंगा कहती है :
ऊँचे हिमालय के तीक्ष्ण ढाल के लूज सेडीमेंन्टरी रॉक से भूस्खलन डैम के ऊँचाई का समानुपाती होता है. विशाल भीमगोडा-बिजनौर-नरोरा बैरेज से ‘फ्रीसीपेज हाइट’ का बढ़ना और नदी किनारे को टूटना और धसना अवश्यम्भावी है. जितना नदी जल का दोहन उसी अनुपात में सेडीमेंन्टेशन और बाढ़-कटाव समस्याओं का होना प्राकृतिक सिद्धांत है. इन समस्त कार्यों के परिणाम को जानते हुए किया जाना ‘तामसी कार्य’ है.