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गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – नदी विज्ञान की गहराई के ज्ञान का होना आवश्यक है. अध्याय 18, श्लोक 26 (गीता : 26)

  • By
  • U.K. Choudhary
  • May-28-2019
मुक्तसंगोअ्नहंवादी धृत्युत्साहसमन्वितः । सिद्धयसिद्धयोर्निर्विकारः कर्ता सात्त्विक उच्यते ।। गीता : 18.26 ।।

श्लोक का हिन्दी अर्थ :

जो कर्ता संगरहित अहंकार के वचन न बोलने वाला धैर्य और उत्साह से युक्त तथा कार्य के सिद्ध होने और न होने में हर्ष शोकादि विकारों से रहित है, वह सात्विक कहा जाता है.

श्लोक की वैज्ञानिकता :

संगरहित अकेलापन शक्ति-संचय को तथा शक्ति क्षय न्यून होने को सम्बोधित करता है. इसी तरह अहंकार का वचन बोलने वाला अन्तस्थ कोशिका को तरंगायित करने वाला शक्ति क्षय करने वाला होता है. इसी तरह जो अपने शक्ति क्षय के विभिन्न स्त्रोतों को प्रतिबंधित करेगा उसी में उत्साह, कार्य करने की योजना होगी और उसी में शक्ति रखने की क्षमता अर्थात धैर्य होगा और शक्ति को संरक्षित रखने वाले को ही सफलता और असफलता से कोई मतलब नहीं रहेगा क्योंकि वह शक्ति क्षय करना नहीं चाहता. अत: शक्ति संचयकर्ता ही सात्विक कर्ता होता है.

(35) हृदयस्थ शिव शक्ति को प्रतिष्ठित करते निरंतरता से आराधना करते रहने वाले भारत के प्रधानमंत्री महान राष्ट्र-भक्त हैं?

गीता (2.45-46) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं - हे अर्जुन ! वेद तीनों गुणों के कार्यरूप समस्त भोगों एवं उनके साधनों का प्रतिपादन करते हैं,  इसलिये तू उन भोगों और उनके साधनों में आसक्तिहीन, हर्ष- शोकादि द्वन्द्वों से रहित, नित्यवस्तु परमात्मा में स्थित योग क्षेम को न चाहने वाला स्वाधीन अन्तःकरण वाला हो यह इसलिए की सब ओर से परिपूर्ण जलाशय के प्राप्त हो जाने पर छोटे जलाशय में मनुष्य का जितना प्रयोजन रहता है. ब्रह्म को तत्व से जानने वाले को समस्त वेदों में उतना ही प्रयोजन रह जाता है. अतः तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं जगजननी माँ के श्रीचरणों में प्रणाम करते कवि कहता है - सृजन के लिए तो शून्यावकाश चाहिए, आँख का सारा आकाश बिना रूप-रंग का आकाश अपने अंदर समा गया हो. खुली आँख परन्तु बाहर नहीं अंदर नजर हो. शब्द की खोज नहीं, अक्षरों का कोई मेल नही, हृदय आनंदित हो या हृदय रोता हो विषमता की तीव्रता स्पर्श करती हो जैसे सागर के लहरों का खारापन जीभ या आँख को छू जाए तो चीख निकल जाती है, परन्तु नजर या हृदय को स्पर्श करे तो ? भाव सागर अंदर ही समा जाता है. शब्दों की नाव पतवार के बिना हिलोरे लेने लगती है. यह विषमता कभी सृजन का पालना बन पाता है. (पुस्तक-साक्षीभाव , पृष्ठ-79 : कविता लिखी गयी थी 22.12.1986 को ) यही हैं भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के अपने इलेक्शन के दिन से एक दिन पहले 18.5.2019 को सबजन-हिताय ‘केदारनाथ गुफा’ में ध्यानस्त होना और भोलेनाथ की पूजा व आराधना करना.

गंगा कहती है :

मेरा सात्विक कर्ता, विज्ञानी रहते हुए जो ध्यानी है वही हो सकता है. मुझे संरक्षित करने का श्रद्धा-भक्ति के साथ नदी विज्ञान की गहराई के ज्ञान का होना नितांत आवश्यक है. इस भक्ति भाव के साथ नदी ज्ञान का नहीं होना ही हमारी समस्या के निदान में बाधा है. मेरे सतोगुणी का नहीं होना.

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