समोअ्हं सर्वभूतेषु न मे द्वष्योअ्स्ति न प्रियः ।। ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् ।। गीता : 9.29 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
मैं सब भूतों में समभाव से व्यापक हूँ, न कोई मेरा अप्रिय है न प्रिय. परन्तु जो भक्त मुझको प्रेम से भजते हैं, वे मुझमें और मैं भी उनमें प्रत्यक्ष रूप से प्रकट हूँ.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
भजन्ति मां भक्त्या,
वे भक्त जो मुझको भजते हैं, शब्द और कार्यरूपी ध्वनि शक्ति तरंगों को अन्तःस्थल में कोशिका के मध्य स्थापित निर्धारित देवस्वरूप को उनके गुणगाण रूपी गीत-मंत्र रूपी शक्ति तरंगो के निरंतरता की बौछार प्रवाह का निर्वहन करते हुए उन्हें स्थिर करने की तकनीक है. इसे स्वरूप-सिद्धि
प्राप्त करना कहते है. हनुमान जी ने भगवान राम जी को हृदय में स्थापित कर, हनुमान के साथ राम भी वन गये राम-राम,शिव-शिव,कृष्ण-कृष्ण, ऊर्जा तरंगों का संचरण
भीतर से होता है और इसके साथ विलय या आदर्श स्थित ईश्वर का सेलुलर-मॉडल ऊर्जा
उत्पन्न करने की तकनीक है. भीतर विचार मात्र से कोशिका व्यवस्था से आदर्श देवस्वरूप का प्रिय शब्द मंत्ररूपी शक्ति तरंगों से समन्वय स्थापित कर बुद्धिमान विवेकवान और शक्तिशाली बनते है. उस देवता को हृदयस्थ करने और उनमें हृदयस्थ होने की वैज्ञानिकता है कि किसी भी वस्तु की
निरंतर सोच, वस्तु को चार्ज करती
है और उसे विचारक के पास ले जाने के लिए मजबूर करती है. अत: तुम्हारा शरीर महान शक्तिशाली बहुरंगी चुम्बक है. जिस किसी स्वरूप से कोशिका को व्यवस्थित किया उस स्वरूप को खींच कर वह ले आयेगा. यही है, परब्रह्म का निर्लिप्त होना, किसी से न लगाव न द्वेष का लोहा होना और भक्ति रूप कोशिका व्यवस्था से उत्पन्न चुम्बकीय शक्ति के तहत खींच कर भक्त के पास आ जाना. द्रोपदी की इसी शक्ति के तहत भगवान श्री कृष्ण ने द्रोपदी की लाज और गज गृह युद्ध में गज को उबारा था. यही है “जैसा वह तुमको, वैसा तुम उसको”.
गंगा कहती है :
मैं निरंतरता से समभाव स्थिति से अपने कार्य में तल्लिन रहते हुए, जो जिस भावना से मुझे पूजता या देखता हुआ कार्य करता है उसको उसी भावना से देखती हूँ. सहायता या प्रतिक्रिया प्रस्तुत करती हूँ. अतः तुम्हारे अन्तःस्थल में मेरा स्वरूप क्या है तदनुरूप ही तुम कार्य करोगे. मानों तुम बाँध बनाते हो
तो बाँध का स्वरूप मात्र तुम्हारे मानस पटल पर अंकित होगा. गंगा के साथ बाँध तुम्हारे दिमाग में नहीं उतरेगा. इसी तरह मालवाहक जहाज का दृश्य तुम्हारे दिमाग में तो उतरेगा परन्तु सूखी हुई गंगा में मालवाहक जहाज का दृश्य तम्हारे मानस पटल पर अंकित नहीं होगा. यही कार्य की हृदय में ड्राइंग बनाना तदनुरूप उस कार्य का होना होता है. यही है तुम्हारी भावना से वह और उससे तुम्हारी भावना का होना.