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गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – नदी तकनीक व्यवस्था के सभी सिद्धांत शास्त्र जनित है. अध्याय 18, श्लोक 9 (गीता : 9)

  • By
  • U.K. Choudhary
  • May-09-2019
कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेअ्-र्जुन ।संग त्यक्त्वा फलं चैव स त्यागः सात्त्विको मतः ।। गीता : 18.9 ।।

श्लोक का हिन्दी अर्थ :

हे अर्जुन ! जब मनुष्य नियत कर्तव्य को करणीय मानकर करता है और समस्त भौतिक तथा फल की आशक्ति को त्याग देता है, तो उसका त्याग सात्त्विक कहलाता है.

श्लोक की वैज्ञानिकता :

परम्पराओं की व्यावहारिकता से प्रतिष्ठित नियमावली के अनुसरण से कार्य आनंद प्रदायक होता है. यही है, आत्मस्त भाव से देव-ग्रह-नक्षत्र, दिन-समय की संतुलंता से अर्थ और शक्ति की समुचित व्यय से दीर्घकालिक शांति पथ पर अग्रसर होना और यज्ञ मुंडन, यज्ञोंपवित शादी आदि का शास्त्रीय विधि से करना.

(21) स्थित-प्रज्ञ भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ‘कर्म-योगी हैं?

गीता (5.20) में भगवान श्रीकृष्ण ‘कर्म-योग’ की व्याख्या करते कहते हैं कि जो पुरुष प्रिय को प्राप्त होकर हर्षित नहीं हो और अप्रिय को प्राप्त होकर उद्विग्न न हो वह स्थिरबुद्धि संशय रहित ब्रह्मवेत्ता पुरुष सच्चिदानन्द परब्रह्म परमात्मा में एकीभाव से नित्य स्थित है. इसी स्थिति में कवि कहता है ‘जगजननी माँ के श्री चरणों में प्रणाम ! माँ तेरी परम शक्ति के आधार पर कहता हूँ उदारता के नाम से राग-रंग में डूबे हुए जीवनों के मुखौटे उतरेंगें ही यह जगत शायद उसको सहन भी कर लेगा परन्तु स्वीकृति तो नहीं ही देगा. आखिर मैं भी तो तेरी कृपा के कारण इस जगत के साथ एकाकार बन अंशभाव से ही तो जीता हूँ. इसलिए तो मूल्य की रक्षा की चिंता है, अंतरमन पुकार कर कहता है समाधान को जीवन किसलिए बनाया?  संकल्प ही जीवन हो सकता है. जो श्रेष्ठ है, उसी की स्वीकृति हो उसी को समर्पण हो और तभी तो यह समर्पण अंतर्मन को सुख दे सकेगा. माँ तू मुझे सब प्रभाव व क्षेत्रों से मुक्त कर, तू मुझे एक मुक्त मानव बना भिन्न-भिन्न और भाँति-भाँति के मुखौटे में जीते मानव को अंदर से पहचानने की शक्ति दे ! मुझे किसी को मापना नहीं है. मुझे अपनी श्रेष्ठता सिद्ध नहीं करनी है. मुझे तो नीर-क्षीर के विवेक को ही पाना है. मेरी समर्पण यात्रा के लिए यह सब जरूरी है. (04-12-1986 की कविता). यही हैं समदर्शी पूर्ण समर्पित दृढ संकल्पित भारत के महान कर्मयोगी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के आत्मस्त-बातें (पुस्तक-साक्षीभाव , पेज-37 ).

गंगा कहती है :

पूर्ण-कुम्भ, अर्ध-कुम्भ, माघस्नान-संगमस्नान आदि समस्त पर्व-त्योहार शास्त्र विहित परम्पराओं के सभी वर्गों-समुदायों-व्यवसायी को पवित्रता, निश्छलता व आत्मीयता के एक सूत्र में पिरोने वाली अदृश्य स्थिरता की शांति की शक्ति, मुक्ति-प्रदायिनी ब्रह्म-बंधन है. आगे ये शास्त्र विहित ज्ञान नदी व्यवस्था इनकी संतुलंता की समस्त तकनीकी ज्ञान भंडार हैं. इन्हीं से प्रतिपादित ये सिद्धान्त हैं.  1.बाढ़ नियंत्रण सिद्धांत, 2. मृदा, कटाव व व्यवस्था का संगम सिद्धांत 3. जल बंटवारे का सिद्धांत, 4 . तीन-ढ़लान का सिद्धांत,  5. प्रदूषण मॉडलिंग सिद्धांत.  यही है, भारत की महान धरोहर ‘शास्त्र-पुराण’.

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