हमारी भारतीय संस्कृति में नदियां सदैव ही जीवनदायिनी के रूप में पूजनीय रही है. परन्तु वर्तमान समय में यही नदियाँ आज लुप्त होने के कगार पर है. माँ तुल्य पूजनीय जो नदियां कभी जीवन तंत्र का हिस्सा हुआ करती थी, आज स्वयं के अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं. अंधाधुंध विकास के नाम पर जिस प्रकार नदियों का दोहन किया जा रहा है, एक दिन ये मात्र किताबों में ही अपना स्थान समेट लेंगी और यह केवल एक इतिहास बन कर रह जायेगा की यहां कभी नदियां हुआ करती थी. आज कारखानों, औद्यौगिक केन्द्रों, कृषि अपशिष्ट व जहरीले रसायनों से भरे नालों द्वारा नदी के जल को निरंतर दूषित किया जा रहा है.
सीसामाऊ नाला : गंगा प्रदूषण का मुख्य स्त्रोत
कानपुर के बजरिया थाने के पास स्थित अंग्रेजों द्वारा वर्ष 1892 में निर्मित सीसामाऊ नाला कई वर्षों से निरंतर गंगा को प्रदूषित करता आ रहा है. जनसंख्या के स्तर में वृद्धि होने के साथ साथ नाले के प्रवाह का स्तर भी बढ़ता चला गया. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ो के अनुसार 7-8 किलोमीटर लम्बा यह नाला गंगा के दाहिनी ओर मिलता था. इस नाले में कानपुर शहर स्थित फैज़लगंज के कसाईखानों का अपशिष्ट व अधिकांश शहर का असंशोधित अवजल जाकर गंगा को प्रदूषित कर रहा था. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा गहन अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार की गयी थी, जिसके अंतर्गत गंगा नदी में गिरने वाले सभी प्रमुख नालों की सूची निर्मित की गयी, जिसमें सीसामाऊ नालें से जुड़े प्रमुख आंकड़ों का ब्यौरा प्रस्तुत किया गया था, जो निम्नांकित है :
इस नाले के माध्यम से घरेलू सीवेज गंगा में बेरोक-टोक बह रहा था. वर्तमान समय में यह नाला इतिहास के पन्नो में लुप्त हो गया है. वर्षो पुराने प्रदूषण के इस दंश से आखिरकार गंगा को मुक्ति प्राप्त हुई. नदियों को स्वच्छ करने की पहल करते हुए नमामि गंगे के सबसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट को सफलता मिली. इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत एशिया के सबसे बड़े व 128 साल पुराने नाले की गंदगी से गंगा को निजात मिली तथा गंगा को निर्मल बनाने की दिशा में बहुत बड़ी कामयाबी प्राप्त हुई. नमामि गंगे के प्रोजेक्ट इंचार्ज घनश्याम तिवारी के अनुसार,
“नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत प्रोजेक्ट बनाकर प्रयास किया तथा इसे 2 भागों में मोड़ा गया. इस नाले से निकलने वाले 140 एमएलडी गंदे पानी में से 80 एमएलडी बिनगवां और 70 एमएलडी पानी जाजमाऊ ट्रीटमेंट प्लांट भेजा जा रहा है. यह 9 किलोमीटर तक का सीवर लाइन है, जिसे एसटीपी किया जा रहा है.”
जटिल प्रक्रिया : सफल प्रयास
गंगा की स्वच्छता हेतु नाले के सीवेज को रोकना बेहद की चुनौतीपूर्ण कार्य था,
क्योंकि इस नाले से 14 करोड़ लीटर सीवेज गंगा में गिरता था, जिसमें से 8 करोड़ लीटर
सीवेज को कुछ ही दूर पहले मोड़कर एसटीपी तक भेज दिया गया था. नाले का वेग नहर के
समान था जिसके परिणामस्वरूप कार्य में बहुत सी जटिलताओं का सामना करना पड़ा. नाले
के ढलान को पंप कर के उसे 9.5 किलोमीटर दूर एसटीपी तक पहुचांने में कठिनाइयाँ भी आ
रही थी, क्योंकि जेएनएनयूआरएम की दागदार पाइप लाइन के साथ रूट पर बेहद पुराना
ब्रिटिश के जमाने का डॉट नाला भी है.
8 अन्य नालों पर लगा प्रतिबंध
सीसामाऊ नाले के साथ साथ ही 16 और नाले ऐसे मिले है जो गंगा जल को प्रदूषित कर
रहें हैं. इनमें से 8 नालों पर पूर्णतया प्रतिबन्ध लगाया जा चुका है तथा बाकी बचे
नालों का भी निरीक्षण कार्य प्रगति पर है. गंगा को स्वच्छ व प्रदूषण रहित बनाये
रखने की दिशा में कदम उठाते हुए अधिकारियों ने कहा की यह कार्य पूरा तो हो गया है
पर इसकी मॉनिटरिंग अभी भी जारी है और यह लगातार की जाएगी. किसी भी प्रकार की गड़बड़ी
होने पर तुरंत उसे ठीक किया जायेगा.