इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयानघ । एतद्बुद्- ध्वा बुद्धिमानस्यात्कृतकृत्यश्च भारत ।। गीता : 15.20 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
हे निष्पाप अर्जुन ! इस प्रकार यह अति रहस्य युक्त गोपनीय मेरे द्वारा कहा गया, इसको तत्व से
जानकर मनुष्य ज्ञानवान और कृतार्थ हो जाता है.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
ज्ञानवान कोशिका को दृढता से व्यवस्थित
करने वाला और कृतार्थ होने वाला शक्तिवान होते हुए केन्द्रस्थ हो जाने वाला शांति स्वरूप
लक्ष्य, आनंद प्राप्त करने वाला ब्रह्मस्थ हो जाने वाला होता है. यही है जन्म लेने
का उद्देश्य.
गंगा कहती है :
मेरा पृथ्वी पर ब्रह्मलोक
से आने का एक उद्देश्य था और समस्त कार्यों का अवतारों का उद्देश्य मात्र एक ही होता है, शांति सागर ब्रह्म
में लीन होना. यही होता है, आनंदानंद को प्राप्त करना, मेरा पृथ्वी पर अवतरित होने का मात्र
यही उद्देश्य था और यही है. मेरे इस वेद पुराण वर्णित कार्य पर विश्वास कर मेरे
सर्वरूपेण संरक्षण की व्यवस्था करना मेरे नैसर्गिक जलगुण
को संरक्षित करना तुम्हारे समस्त कार्यों का कार्य धनों का धन, शक्तियों की शक्ति, विद्याओं की
विद्या और आनंदों का आनंद परमानंद जीवन-उद्देश्य की
पूर्ति ही कृतार्थ होना है. तुम्हारी यह एकाग्रता विश्वशांति ब्रह्म शांति और शांति
का कार्य पथ है.