ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते ।। एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् ।। गीता : 9.15 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
अन्य लोग जो ज्ञान के अनुशीलन द्वारा यज्ञ में लगे रहते हैं. वे भगवान की पूजा उनके अदिव्य रूप में विभिन्न रूपों में तथा विश्व रूप में करते हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
यज्ञ अथार्त निर्धारित समय में निर्धारित पदार्थ को निर्धारित विधियों और श्रद्धा-भावों से मंत्रों द्वारा अग्नि को हवन-कुण्ड में समर्पित करना तथा पदार्थ को शक्ति में रूपांतरित करना ये यज्ञ कहलाता है. तुम्हारे शरीर का पेट सबसे बड़ा हवन-कुण्ड है. यदि तुम्हारी यह अवधारणा अटल हो जाये कि मेरे शरीर के भीतर परब्रह्म निवास कर रहा है और जो मैं खा-पी रहा हूँ, उसे पेटरूपी हवनकुंड के द्वारा समर्पित कर रहा हूँ. तुम्हारी यह अवधारणा मात्र तुम्हारी कोशिका को रेखांकित कर तुम्हारे शरीर में विशेष शक्ति का संचार कर देगी. यही है ज्ञान यज्ञ. तुम्हें लगेगा की तुम तनाव रहित हो गये. यह है तत्काल वैराग्य प्राप्त करने के लिए ज्ञान. यह आध्यात्मिक ज्ञान
प्राप्त करने की सूक्ष्म प्रणाली है. यदि तुम ब्रह्म न्यूक्लियस को भीतर नहीं मान कर उसे बाहर ब्रहमाण्ड के रचनाकार के रूप में मानोगे तब तुम्हें उसके विकराल स्वरूप की अवधारणा करनी होगी इसका कारण है कि सभी प्रणालियों में या तो माइक्रो या मैक्रो
न्यूक्लियस होना चाहिए. यह अवधारणा दुष्कर प्रतीत होती है. अतः अपने शरीर से परब्रह्म की अनूभूति लेना ज्यादा सरल और ज्ञानवर्धक है.
गंगा कहती है :
ज्ञान-यज्ञ पदार्थ शक्ति सम्बन्ध को हृदयांगम करते हुए उसका क्रियान्वन सूक्ष्म या वृहत या दोनों में कहाँ और कैसे किया जा सकता है इसके लिये निरंतर सर्वेक्षण की आवश्यकता है, क्योंकि पदार्थीय स्वरूप और उनका आकार-प्रकार रूप-रंग आदि और इनकी तीन दिशाओं की व्यवस्था, इसके कार्य करने की क्षमता की व्याख्या करता है. यह कोई संस्था नहीं है, कोई प्रयोगशाला नहीं है, जो भू-आकृति विज्ञान-गतिशील विशेषताओं में किए गए परिवर्तनों का ध्यान रखेगी तथा इससे हर साल अरब टन उपजाऊ मिट्टी का नुकसान हो रहा है और बिना ज्यादा बारिश के भी बाढ़ की बढ़ती हुई बारंबारता का होना, अत: उपजाऊ भूमि कटाव क्षेत्रों का संरक्षण न्यूनतम् खर्च में स्थायी तौर पर सरल सूक्ष्म से वृहत तकनीकी से किया जा सकता है, यही है सूक्ष्म ज्ञान से ब्रह्म शक्ति को समझना और गंगा को व्यवस्थित करना.