The Ganges
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गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है - मेरी व्यवस्था तकनीक का सरल सिद्धांत इनफ्लो-आउटफ्लो की संतुलंता है. अध्याय 16, श्लोक 11 (गीता : 11)

  • By
  • U.K. Choudhary
  • January-10-2019
चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिताः ।कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिताः ।। गीता : 16.11 ।।

श्लोक का हिन्दी अर्थ :

वे मृत्युपर्यन्त रहने वाली असंख्य चिन्ताओं का आश्रय लेने वाले, विषय भोगों के भोग में तत्पर रहने वाले और इतना ही सुख है,  इस प्रकार मानने वाले होते हैं.

श्लोक की वैज्ञानिकता :

चिन्ता , कंपकंपाहट का जन्म दाता तथा बाह्य-शक्ति प्रवाह को तीव्रता से होने को कहते हैं. यदि यह चिन्ता असंख्य  भोग ललक आधारित अतार्थ “इसके सिवा है क्या” का भोग-ध्यान हो तो नीचे ढ़लकने का ढ़ाल तीव्र है. ये समस्त नीचे की योनियों में ले जाने वाली जीवन उद्देश्य को विध्वंस करने वाली शक्तियाँ हैं.

गंगा कहती है :

तुम्हारी, मेरे उपयोग की बढ़ती बड़ी-बड़ी असंख्य इच्छायें हैं. तुम सोचते हो  गंगा इसी उपयोग के लिये है. यह अवधारणा शास्त्रों-पुराणों विज्ञानों से निर्धारित करना है कि मेरा मौलिक उपयोग कहाँ, क्या और कैसे हो? मेरी व्यवस्था तकनीक है. इसका सरल सिद्धांत इनफ्लो आउटफ्लो की सन्तुलंता है. यही है, कार्य और इसके परिणाम का मूल्यांकन मंथन करना. चीन ने TGP डैम 18000 मेगा वाट क्षमता का बनाने में 40 वर्ष तक मॉडलिंग आदि कर अनुसंधान किया. तुम टीहरी, फरक्का जल परिवहन आदि के लिये क्या-क्या और कितने दिन तुमने अनुसंधान मंथन की व्यवस्था की है. यही है तुम्हारा, तुम्हारी प्लानिंग के सिवा और है ही क्या? यही है मेरे जल गुण का निरंतरता से गिरने का आधारभूत कारण.

नदियों की समस्त समस्याओं का कारण भ्रष्ट प्रशासन है :

अन्तिम क्षण तक विषय भोगों के लिये तड़पने वाला सीमित सुख को मानने वाला भी संस्कार वश इन नदियों को भोग की सामग्री नहीं समझता है. उसके “जीन” में भारत की संस्कृति शास्त्रों-पुराणों द्वारा प्रतिष्ठित और पूर्वजों द्वारा संरक्षित है और घर के आचरण में निहित ये माताएं हैं. अत: समस्त समस्याओं का कारण भ्रष्ट प्रशासन है, जिस कारण मल-जल व्यवस्था की व्यापक और संतुलित नीति का आधार अभी तक देश में निर्धारित नहीं है. क्या प्रशासन इसके लिए महान दंडनीय अपराध का भागी नहीं है कि वाराणसी के टोपो-सीट में असि नदी, अस्सी नाला है?  इसी कारण प्रशासन ने अभी सीवर पाइप को असि नदी में मैनहोल को बनाकर उसे जोड़ दिया है और लोग अपने घर में सेप्टिक-टैंक नहीं लगा कर घर के मल-जल को असि-नदी में बहा रहे हैं और 40 वर्षों से प्रशासन को जगाने पर भी सरकार नहीं जाग रही है. विषय भोगों के भोग में तत्पर रहने वाले प्रशासन के कारण असि-वरूणा-गंगा और देश की समस्त नदियों की दुर्दशा उनका सिकुड़ते हुए मल-जल-वाहक बनते जाना है. अतः जागो,  तुम ऋषियों की संतान हो,  ये माताएं हैं,  इनकी रक्षा “पार्ट टू होल तथा सेप्टिक-टैंक” से करो.

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