पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः ।। वेद्यं पवित्रमोंकार ऋक्साम यजुरेव च ।। गीता : 9.17 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
इस सम्पूर्ण जगत का धाता अर्थात धारण करने वाला एवं कर्मों के फल को देने वाला पिता-माता-पितामह जानने योग्य पवित्र ओंकार तथा ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
सम्पूर्ण जगत को धारण करने वाला एवं कर्मों के फल को देने वाला मात्र वही हो सकता है, जिसका शरीर ही ब्रह्माण्ड हो. अतः हर शरीर अपने आप में एक सूक्ष्म-ब्रहमाण्ड है, जिसमें शरीर द्वारा सोचे और किये गए कार्य की रिकॉर्डिंग नियंत्रण व निरंतरता के साथ होती रहती है. यह इसलिए होता रहता है क्योंकि तुम्हारे शरीर की संरचनायें किसी दो बिन्दु पर एक जैसा नहीं होने के कारण वातावरण के बदलते स्थान और समय से रूपांतरित होती विभिन्न ताप-दबाव आदि शक्तियाँ तुम्हारे शरीर के हर एक कण पर, हर एक क्षण बदलते आयाम और आवृति के होते हैं. इन शक्तियों का सम्पूर्ण शरीर पर परिणाम कितना और किस दिशा में होगा यह तुम नहीं जान सकते. इन सब का कारण पृथ्वी की घूमती हुई
गति है, जिसे कोई बदल नहीं सकता. इसलिये तुम्हारे हाथ में कुछ भी नहीं है. हाथ, पाँव व दिमाग चलाते-चलाते अविनाशी कार्य करते रहो पर परिणाम उसके हाथ में है. वह तुम्हारा पिता-माता-पितामह इसलिये है, क्योंकि तुम जन्म-जन्मों से जितने भी कार्य करते आ रहे हो वह सूक्ष्माति सूक्ष्म कोशिका के रूप में तुम्हारे साथ एक-जन्म से दूसरे जन्म में जाते है. भीष्म पितामह के शूल सैय्या का कारण उनके पूर्व जन्म का कर्तव्य था. अतः वह कौन है, यही जानने का विषय है. वह तुम्हारे माता-पिता-पितामह होने के कारण तुम्हें तुम्हारे पापों से उद्धार के लिये पवित्र ऊँ मंत्र और ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद में दिया है.
गंगा कहती है :
मेरे शरीर के बदलते समस्त गुणों से थल-जल और नभ जीव बदलते चले जाते हैं. जो वनस्पतियाँ,
मछलियाँ एवं अन्य जल जीव और पशु-पक्षी मेरे पहाड़ी क्षेत्र में मिलते है, वे इलाहाबाद, बनारस और कोलकाता के क्षेत्र में नहीं मिलते हैं. इसी तरह मानव सहित इन जीवों में मेरे जल के चारित्रिक गुणवत्ता बदलने से बदलाव होता चला जा रहा है. यही है नदी-प्रदूषण का बढ़ना चारित्रिक प्रदूषण का होना. जितना नदी प्रदूषित होती जाती है उतनी ही अशांति गुण्डागर्दी बढ़ती जाती है. यही है नदी बदली इसके साथ ही तुम बदले, तुम्हारा रहन-सहन बदला और वातावरण बदला. यही है गंगा को पिता-माता और पितामह बनाना तथा इसको गम्भीरता से जानना. यही है जीव-जगत को धारण करने वाली और कर्मों के फल को देने वाली माता. यही है पवित्र भूमि भारत का संस्कार. गंगा सहित समस्त नदियों का पूजन करना. यही है विभिन्न वेदों में ओंकार मंत्र और इसकी व्याख्या.