ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं बिशालं क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति ।। एवं त्रयी-धर्ममनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते ।। गीता : 9.21 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
इस प्रकार जब वे (उपासक) विस्तृत स्वर्गिक इन्द्रिय सुख को भोग लेते हैं और उनके पुण्य कर्मों के फल क्षीण हो जाते हैं, तो वे इस मृत्यु लोक में पुनः लौट आते हैं. इस प्रकार जो तीनों वेदों के सिद्धांतों में दृढ़ रह कर इन्द्रिय सुख की गवेषणा करते हैं, उन्हें जन्म-मृत्यु का चक्र ही मिल पाता है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
तीनों वेदों का अनुसरण सकाम कर्म के लिये कर तुमने पदार्थ को शक्ति में रूपांतरित कर के मृत्यु के पश्चात विशाल स्वर्ग को प्राप्त कर लिया. वहाँ तुम अपनी अविनाशी शक्ति को मानों अन्न पानी बेच कर जमा पैसे को बाजार में विभिन्न सामानों में लगाओगे और मन में संजोये विभिन्न इन्द्रिय भोगों को छक कर भोगोगे और जब बाजारी करते-करते पैसा खत्म हो जायेगा. अर्थात जब तुम्हारी समस्त संकलित-शक्तियां समाप्त हो जायेगी तो पुन: तुम पृथ्वी पर जन्म ले लोगे. संचित-शक्ति से स्वर्ग-भोगने के उपरांत पुन: पृथ्वी पर लौटना, मानों व्यापार करने के उपरांत घर लौटना है. अब प्रश्न है कि मार्केटिंग तुम कितना देर करोगें? जितना ज्यादा पैसा और जितना हल्का सामान उतने ही देर तक मार्केटिंग. अत: स्वर्ग में तुम अपने शहर के किन-किन द्वारों को खोलते हो, उस पर निर्भर करता है कि तुम वहाँ कितनी देर रहोगे. तुम्हारी सिटी गेट्स
की परिचालन प्रणाली स्वर्ग में तुम्हारे ठहरने की अवधि को परिभाषित करती है.
गंगा कहती है :
तुम सकाम कर्म टीहरी सहित बड़े बड़े बाँधों भीमगोडा, नरौरा व फरक्का जैसे बैरेजों का निर्माण कर सुख-दुःख की अनूभूति कर रहे हो पर सूखती गंगा में न जाने कैसे मालवाहक जहाज चलाने की तैयारियां कर रहे हो. यह देश के नदी वैज्ञानिको को समझाने की आवश्यकता है. यह इसलिये क्योंकि तीन वेदों द्वारा इन्द्रिय तृप्ति की कामना से स्वर्ग प्राप्ति के लिये वेदों के ठोका-ठठाया का विधान है पर गंगा के नवम्बर-दिसम्बर से जून के बीच बनारस में बीच-गंगा में 2.5 से 3.5 मी. जल की गहराई में किस क्षमता की मालवाहक जहाज कैसे चलेगी, यह निम्नलिखित कारणों से समझ से परे और दुष्कर प्रतीत हो रहा है : (1)नदी में जल की न्यूनतम गहराई, न्यूनतम वेग, मालवाहक जहाज की क्षमता-वेग और पथ को परिभाषित करता है (2)नदी के नदोदर किनारे में ज्यादा गहराई होने के कारण जहाज का पथ को एक मोड़ से दूसरे मोड़ में अधिकतम से न्यूनतम के बीचो बीच लाना होगा (3)जहाज के आने में ज्यादा और जाने में कम आवेग के क्षति कारण कटाव,जमाव,प्रदूषक व फैलाव आदि भयावह हो सकते हैं. अत: गंगा की दिनानुदिन सूखती हालत में मालवाहक को चलाना अति-गंभीर समस्या के निदान के विषय में सोचते हुए स्थायी कदम रखो. यही है यज्ञ में आहुति करने की तकनीक पर विचार कर धनोपार्जन स्वर्ग-प्राप्ति के लिए करना.