गतिर्भता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत् ।। प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमब्ययम् ।। गीता : 9.18 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
प्राप्त होने योग्य परम धाम, भरण पोषण करने वाला, सबका स्वामी शुभाशुभ को देखने वाला, सबके वासस्थान शरण लेने योग्य, प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला सबकी उत्पत्ति-प्रलय के हेतू स्थिति का आधार, निधान और अविनाशी कारण भी मैं ही हूँ.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
गतिःभर्ता, ब्रह्माण्ड के सूक्ष्म और वृहत समस्त वस्तुओं का उद्देश्य, लक्ष्य तथा निर्धारण अवश्यमभावी है, कहीं न कहीं और कभी न कभी ऑफिस जाने-आने का दिन में कार्य और रात को सोने का कोशिका का काँपना टूटना बनने का और जन्म-मरण की बारंबारता का अन्त लक्ष्य को प्राप्त होना ही है. अब चूंकि पृथ्वी सहित ब्रहमाण्ड की समस्त वस्तुओं को चक्रमन करना पड रहा है, अतः चक्रमन-केन्द्र का होना ऑफिस से घर आने का होना, घर में सब सुख-सुविधाओं, माता-पिता, स्त्री, बाल-बच्चों के स्नेह आदि के होने की आवश्यकता होती है. यही है जन्म-मृत्यु के अनंत चक्रमन के बाद परब्रह्म का परम धाम भरण-पोषण, देख-भाल, सेवा-सुश्रुषा, लाड़-प्यार व ऐशोआराम. इसके उपरांत पुनः खेल-तमाशा ऑफिस आने-जाने का जन्म लेने और मरने का वही पुराना चक्कर है. इस झूठे ठगपने वाले खेल को समझ कर उस मदारी ब्रहमाण्ड को नचाने वाले को पकड़ना ही ब्रह्मज्ञान
है.
गंगा कहती है :
तुम्हारे समस्त क्रियाकलाप हमारे हृदयस्थल बेसिन में होते हैं. तुम यहाँ बार-बार जन्म लेते और मरते हो. तुम्हारे जैसे समस्त
जीव यहीं जन्म लेते बढ़ते और मिटते है. तुम अगल-बगल, मिर्ची-तीखा और गन्ना-मीठा आदि अनेक वस्तुओं को पैदा करते तथा यह साफ देखते हो कि मैं सबका भरण-पोषण करने वाली, शुभाशुभ को देखने वाली, सबको वास स्थान देने वाली, प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाली हूँ. इन सबके अतिरिक्त मैं बाढ़ से जलमग्नता, कटान से महान-उथल-पुथल, प्रदूषण से विभिन्न बीमारियों आदि का भी कारण हूँ. इन कारणों के आयामों एवं बारंबारता का विश्लेषण कर के देखो कि मेरा रूप कैसे विकराल होता जा रहा है. यदि यह समय से नहीं हुआ तो मैं प्रलय का भी कारण हूँ.