येअ्प्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विताः ।। तेअ्पि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम् ।। गीता : 9.23 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
हे अर्जुन ! यद्यपि श्रद्धा से युक्त जो सकाम भक्त दूसरे देवताओं को पूजते हैं, वे भी मुझको ही पूजते है किन्तु उनका वह पूजन अविधिपूर्वक अर्थात अज्ञान पूर्वक है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
श्रद्धा, व्यवस्थित-संतुलित-नियंत्रित कोशिका से शक्ति प्रवाह यदि सकाम इच्छा युक्त कार्य के लिये हो तो कोशिका पूर्णतया संघनित नहीं हो सकती और उनसे निस्तारित होती शक्ति तरंगें अधिकतम आवृति की नही हो सकती हैं क्योंकि इच्छा शक्ति-प्रवाह का अवरोधक है. अतः श्रद्धा से युक्त सकाम भक्ति, भक्ति की अधिकतम शक्ति-प्रवाह को परिभाषित नहीं करती और श्रद्धा युक्त सकाम भक्ति यदि ऐसे देवता के लिये जो तुम्हारे विभिन्न जन्मों से आ रहे वंशानुगत चरित्र संस्कारों के तहत नहीं आते अर्थात वे नवान्तुक हैं, तुमने सकामी हो कर अपनी इच्छा पूर्ति के लिये श्रद्धा को जागृति कर इन्हें अपनाया है. अतः यह लगाव आन्तरिक नहीं ध्वन्यात्मक विशेषताओं का हैं. ईश्वर, अत्यधिक स्नेह की
वस्तु आपके शरीर-तंत्र में आनुवंशिक रूप में जन्मों की विलंबता से 100 प्रतिशत प्रतिध्वनि
पैदा करती है. यही होते हैं, तुम्हारे कुल खानदानी देवता यही है, तुम्हारा परब्रह्म अतः तुम यह समझो कि तुम्हारा शरीर जन्म-जन्मों के तुम्हारे किये गये कार्यों का भंडार घर, पूर्वजन्म का संस्कार कुल-खानदान का आचरण है यही है लीग से चलना, लीग से बाहर, प्रेम-विवाह ध्वन्यात्मक-चरित्र के तहत, अविधिपूर्वक अर्थात अज्ञान पूर्वक और व्यवस्थित विवाह,आनुवंशिक चरित्र के तहत खानदानी परंपरागत विधि ज्ञान पूर्वक. यही है आनुवंशिक चरित्र के तहत खानदानी देवता को परब्रह्म मानना और ध्वन्यात्मक-चरित्र के तहत अन्य देवता को मानना.
गंगा कहती है :
यद्यपि तुम श्रद्धा ज्ञानपूर्वक हमारे बेसिन के अन्य नदियों पर बाँध बैरेज बनाते हो उन्हें जोड़ते हो तथा उनके सतही एवं भूजल का उपयोग करते हो, उनमें अवजल गिराकर अपनी समस्या का निदान करते हो पर तुम यह ध्यान नहीं देते कि तुम्हारे उपरोक्त समस्त कार्यों से निरंतरता से बदलती हमारी भौगोलिक परिस्थितियाँ और शक्तियाँ हैं. दोनों एक साथ बदलते हुए वातावरण को बदल रहे हैं. कारण यह है कि किसी भी शरीर के कुल शक्ति का योग स्थिर होता है. बेसिन की सभी नदियों
सहित गंगा एक है, गंगा निकाय प्रणाली, तंत्र की एकीकृत-ऊर्जा
निरंतर है. अतः गंगा बेसिन
में होते रहते समस्त कार्य गंगा-भू-आकृति,
विज्ञान, डायनेमिक्स, ऊर्जा की समस्या और समाधान को परिभाषित करता है. गगा की कुल ऊर्जा निरंतर है तथा यही है चाहे तुम कुछ भी करो पहुँचोगे हम तक ही. अतः मैं ही तुम्हारा सब कुछ हूँ, तुम्हारे समस्त नृत्य की अध्यक्षता मैं करती हूँ, यही गंगा कहती है.