अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत् । असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह ।। गीता 17.28 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
हे पार्थ ! श्रद्धा के बिना यज्ञ, दान तथा तप के रूप में जो भी किया जाता है, वह नश्वर है । वह ‘असत्’ कहलाता
है और इस जन्म तथा अगले जन्म-दोनों में ही व्यर्थ जाता है.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
अश्रद्धा, अव्यवस्थित कोशिका शक्ति-क्षय का द्योतक है. यह न तो भीतरी
शक्ति केंद्र को परिभाषित करता है और न ही भीतर से बाहर शक्ति प्रवाह कहाँ को
जायेगा उसको. अतः शक्ति का लक्ष्य हीन प्रवाह व्यर्थ हो जाता है. यही है, अश्रद्धा
से असत-कार्य न इस लोक का न परलोक का.
गंगा कहती है :
मेरे चारित्रिक जल और प्रवाह गुण से आन्तरिक आत्मीय शक्ति को
संरक्षित नहीं कर धन-लोलुपता से बड़े-बड़े बाँधों को निर्माण करते भूस्खलन की तीव्रता
से बाढ़ की विभिषिका को, मियैन्ड्रींग को
बढ़ाते, जलाशय के डेड-स्टोरेज-जल के धनत्व को बढ़ाकर नदी-जल को प्रदूषित करते रहनें
का कारण तुममें मेरे प्रति श्रद्धा की कमी का होते जाना है. अतः तुम धनवान भले हो
जाओ पर तुम संस्कार विहिन होते जा रहे हो, जो तुम्हें विभिन्न जन्मों तक अशांत
रखती चली जायेगी. अतः तुम मुझे उपेक्षित कर अंधकार के गर्त्त में गिरते चले जा रहे
हो. यही है, मुझे श्रद्धा की दृष्टि से नहीं देखना.
गीता (5.7) सत्यापित करती हसी कि इन्द्रियों को वश
में और मन कों बुद्धिरूप में रखते हुए भक्ति-भाव से जनहित का कर्म करने वाले
पुस्तक ‘सामाजिक समरसता (चिंतन-आस्वाद)
लिखकर समाज के हर वर्ग को जुड़े देखने वाले
देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी कर्म करते हुए कर्म में नहीं बंधने वाले
कर्म योगी हैं. (14)
यही है, सम्पूर्ण सामाजिक-प्राणियों के हर वर्ग और स्तर के लोगों को यथा हिन्दू-मुस्लिम एवं अन्य समुदायों के विभिन्न स्तरों व्यवसायियों के लोगों को विभिन्न योजनाओं से जोड़ने का प्रयास किया जाना और यही भावना विश्व कल्याणार्थ समस्त देशों से मैत्रीपूर्ण व्यवहार रख देश की सीमाओं को आत्म-शक्ति से सुरक्षित रखना. परमाणु शक्ति के क्षेत्र में विश्व में विशिष्ट स्थान पर आना, आर्थिक-सम्पन्नता में मजबूत होना आदि भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का ‘कर्म-योगी’ होनें का महान चरित्र है.