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गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – मेरे अनंत जीवों के पालन पोषण की तकनीक को समझना आवश्यक है. अध्याय 10 श्लोक 15 (गीता : 15)

  • By
  • U.K. Choudhary
  • February-08-2019
स्वयमेवात्मात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम ।। भूतभावन भूतेश देव देव जगत्पते ।। गीता : 10.15

श्लोक का हिन्दी अर्थ :

हे भूतों को उत्पन्न करने वाले ! हे भूतो के ईश्वर ! हे देवों के देव ! हे जगत के स्वामी ! हे पुरुषोत्तम ! आप स्वयं ही अपने से अपने को जानते हैं.

श्लोक की वैज्ञानिकता :

समस्त जीव न तो अपने शरीर के विभिन्न अंगों की संरचनाओं को, न उनके उद्देश्यों के तहत निरंतरताओं से बदलते क्रियाकलापों को समझता है और न ही एक क्षण में होने वाले किसी तरह के परिणाम को ही रत्तीमात्र भी समझ पाता है. अतः जन्म तो तुम आँख ले कर अवतरित होते हो पर यह वास्तव में आगे होने वाले किसी भी कार्य को व उसके होने वाले परिणाम को न देखना, तुम्हारी आँख खोलने जैसा है. इसी तरह तुम्हारे समस्त क्रियाकलापों का भविष्य के अंधेरे में हाथ-पाँव पटकने जैसा है. यही है तुम्हारे काँपते हुए कलेजे का ईसीजी. अत: तुम आँख रहित अंधे, कान रहित बहरे, नाक रहित नाकहीन तथा इसी तरह समस्त शरीर के रहते हुए एकक्षण के उपरांत बिना शरीर के हो सकते हो. अतः तुम अभी तो हो पर भविष्य के लिए बिलकुल ही व्यर्थ हो. तुम्हारी इस क्षण भंगुरता में अनन्त काल से नृत्य करते चलते आ रहे ब्रहमाण्ड को पल पल तरंग रूपिणि संसार में डुबाते व निकालते वह कालचक्र चलाने वाला, हाथ की एक अंगुली से सुदर्शन चक्र को नचाने वाला, डमरू के ताल से तांडव नृत्य से ब्रहमाण्ड को अहल्लादित, आंदोलित व तरंगायित करने वाले को क्या कोई कण मात्र से भी समझ सकता है? यही अर्जुन कहते हैं. हे देवों के देव आप मात्र स्वयं को जानते है, दूसरा कोई तिल मात्र भी आपको नहीं समझ सकता है.

गंगा कहती है :

सैंकड़ों साल तक गिरिराज हिमालय की कन्द्रा में तपस्या करने वाले महानयोगी, तैलंग स्वामी के दूध पीने की इच्छा से गंगा में दूध के प्रवाह का होना, पंडितराज जग्गनाथ के भक्ति पूर्ण श्लोक से जल स्तर में अप्राकृतिक प्रवाह में परिवर्तन होना, विद्यापति की प्रार्थना से गंगा की धारा में रातों-रात परिवर्तन का आना, गंगा पूछती है, इस कलिकाल में गंगा की चैतन्यता की अनूभूति क्या तुम्हें नहीं झकझोरती? अतः मुझे पहचानों मेरी जल की धारा, इसके रासायनिक अवयव, इनके चहुदिशाओं में विशाल प्रवाह क्षेत्र, इसकी विभिन्न शक्तियाँ, इससे निरूपित होती बदलती चलती विभिन्न आयामों के कार्यों से अनन्त जीवों के पालन-पोषण के क्रियाकलापों की तकनीक को कोई समझ नही सकता. अतः मैं आदि शक्ति माता हूं.

 

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