श्रद्धया परया तमं तपस्तत्त्रिविधं नरैः । अफलाकांक्षिभिर्युक्तैः सात्त्विकं परिचक्षते ।। गीता : 17.17 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
भौतिक लाभ को न करने वाले
तथा केवल परमेश्वर में प्रवृत्त मनुष्यों द्वारा दिव्य श्रद्धा से सम्पन्न यह तीन
प्रकार की तपस्या सात्विक तपस्या कहलाती है.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
भौतिक लाभ की इच्छा न
करना, शरीर के शक्ति की परवाह नहीं करना, कोशिका को नहीं निचोड़ना तथा इसको जस का
तस रखना, शरीर के कम्पन को नहीं बढ़ाना, आत्मस्त शक्ति को उज्ज्वलतम होते
उर्ध्वगामी होकर शांति प्राप्त करना है. जीवन का मूल मंत्र मात्र यही लक्ष्य,
‘शरीर वाणी मन के संयुक्त कठोर तप से कोशिका
को केन्द्र न्यूक्लियस से जकड़ कर, बाँधकर रखने से ही होना सम्भव है. कोशिका न्यूक्लियस
के इस जकड़न तपस्या को ‘सात्त्विक’ कहते हैं.
गंगा कहती है :
श्रद्धा से कार्य, तकनीकी
दृष्टि से पूर्ण निपुणता से कार्य ही प्रकृतस्थ कार्य, क्रौस सेक्शन आधारित कार्य
है. यह नदी की भौतिक संरचना, क्रौससेक्शन और नदी जल की गत्यावस्था के संतुलन को
परिभाषित करता है. यही है, नदी टर्बुलेन्स को मिनिमाइज करने तथा कटाव, जमाव को न्यूनाधिक करने की तकनीक. यही है, फ्लड, मियैन्ड्रींग
व प्रदूषण को एक साथ नियंत्रित करने की सात्विक विधि.
गीता (2.59) सत्यापित करती है, कि भारत के प्रधानमंत्री
श्री नरेंद्र मोदी स्थितप्रग्य हैं - (5) :
इन्द्रिय भोग से निवृत्त होने पर भी भीतर इन्द्रिय भोग की ज्वाला धधकती है. अपने तीक्ष्ण बाणों से कोशिका को बेधित करते, गुदगुदाते उसे आन्दोलित करते, शक्ति क्षय करते, व्यक्ति के तेज को उसकी कांति को, उसके कार्य करने की पद्धति को और उसके प्लान को डगमगाती रहती है, जो श्री नरेन्द्र मोदी के आचरण में उनके दृढ़ मनंस्थिति में प्रतिष्ठित भारत के धर्म परायण संकल्पित और रेखांकित मानचित्र में रत्ती भर भी टश से मश नहीं कर पा रही है, इससे यह सत्यापित होता है, कि वे देश के ‘स्थितप्रग्य’ प्रधानमंत्री हैं.