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गंगा नदी और गीता – गंगा कहती है – मेरे संरक्षण के बहुआयामों को समझों. अध्याय 17, श्लोक 14 (गीता : 14)

  • By
  • U.K. Choudhary
  • April-01-2019
देवद्विजगुरुप्राग्यपूजनं शौचमार्जवम् । ब्रह्मचर्यमहिंसा च शरीरं तप उच्यजे ।। गीता : 17.14 ।।

श्लोक का हिंदी अर्थ :

देवता, ब्राह्मण, गुरु और ज्ञानी जनों का पूजन, पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा यह शरीर सम्बन्धी तप कहा जाता है.

श्लोक की वैज्ञानिकता :

स्थिरता, कम्पन्न विहीनता आत्मस्त होने को परिभाषित करता है. यह न्यूक्लियस की ऑर्बिटल से नजदीकी है. यही केन्द्र की ओर आकर्षण बल की प्रवलता है. यही है, केन्द्रस्थ होते जाना व शक्ति सम्पन्न होते जाना और यही है, शिव का निरंतरता से ध्यान मग्न होते हुए पूर्ण शक्तिवान रहना. अत: जो व्यक्ति जितना ही भक्ति भाव में होगा  उसकी कोशिका उतनी ही रेखांकिक, संघनित और बलवान  होगी. उसकी स्थैतिक ऊर्जा उतनी ही ज्यादा होगी और वह उतना ही प्रबल होता है. यह स्थिरता क्रम बद्धता से देवता को उसके बाद ब्रह्म के आचरण करने वाले ब्राह्मण को उससे न्यून गुरु को और उसके उपरांत ज्ञानी जनों का होता है. अतः इन सब की पूजा का अर्थ है, अपने आप को शक्ति से आवेषित करना और कोशिका को व्यवस्थित करना. इस शक्ति सम्पन्नता को प्राप्त करने के लिये, न्यूक्लियस की दिशा में बढ़ने के लिए, इलेक्ट्रान की पवित्रता का  दूसरे से नही मिलना, सरलता व सीधे पथ पर बढ़ने का प्रयास, ब्रह्मचर्य शक्ति को संरक्षित करते हुए और अहिंसा अथार्त किसी से टकराते नहीं आगें केंद्र की ओर बढ़ना ही इलेक्ट्रान के काँपते हुए शरीर का धर्म है. यही भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं.

गंगा कहती है :

तुम अपने से श्रेष्ठ किसी को नहीं मानते इसीलिए तीन-पाँच करते हो. अपने आप को अंधकार में रखते हुए दूसरों को यथा तथा प्रोजेक्ट दिखाकर पूजन, पवित्रता, सरलता ब्रह्मचर्य और अहिंसा जो मेरे शरीर का तप है. इसका निर्वहन तुम तृणमात्र भी नहीं कर रहे हो. मैं साक्षात ब्रह्माणी हूँ. मेरी रक्षा केवल निम्न प्रकार हो सकती है –

1. एक जगह से एक समय में  30% से ज्यादा जल का दोहन नहीं करना.

2. किसी तरह के अवजल का कितना भी प्रवाह सभी सेंड वेव से होना.

3. STP बालूक्षेत्र में सही जगह पर सही चैनल के माध्यम से हो.

4. अन्तः और बाह्य प्रवाह के संतुलन का निर्वहन.

5. कटाव-जमाव के सम्बन्ध को समझते हुए उसे व्यवस्थित करते चलना.

यही है, मेरे शरीर से सम्बन्धी तप की व्यवस्था.

प्रधानमंत्री, श्री नरेन्द्र मोदी जी स्थितप्रज्ञ हैं :

दुःखों की प्राप्ति होने पर चीन, पाकिस्तान व अमेरिका सहित अन्य देशों के किसी ढहकार-गर्जन और टंकार से टश से मश नहीं होने वाला, अपनी शक्ति और कर्त्तव्य पर विश्वास के साथ अडिग रहने वाला और राग, भय व क्रोध से दूर और समस्त अन्य सुखों से निःस्पृह देश की गंगा सहित अन्य नदियों के क्षेत्र की सुदृढ़ तकनीकी व्यवस्था का ज्ञान ध्यान नहीं रखते. देश की संस्कार रूपी मौलिक शक्ति को नहीं समझते हुए भी स्थितप्रज्ञ हैं. 

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