दातव्यमिति यद्यानं दीयतेअ्नुपकारिणें । देशे काले च पात्रे च तद्यानं सात्विकं स्मृतम् ।। गीता : 17.20 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
जो दान कर्तव्य समझकर किसी प्रत्युपकार की आशा के बिना, समुचित काल तथा स्थान में और योग्य व्यक्ति को
दिया जाता है, वह सात्त्विक माना जाता है :
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
दान देना कर्तव्य समझना, सदा
सब कुछ उसका अथार्त ब्रह्म का है, जितनी न्यूनाधिक आवश्यकता मेरी वह मेरा और उससे
ज्यादा वह दूसरे का है. वह दूसरा है कौन? वह कहाँ और किस समय में मिलेगा जिसे
ब्रह्म प्रदत्त उसकी वस्तु उसको उससे बिना कुछ लिए उसे लौटाया जाए. यह कर्तव्य शक्ति
का रूपांतरण समय-स्थान-व्यक्ति से इस तरह करना कि प्रतिक्रिया शून्य न लाभ न हानि हो
सात्विक दान कहलाता है. यही है, जिसका जैसा था उसको उसी रूप में लौटा दिया.
गंगा कहती है :
सात्विक-दान, साइन्टिफिक वाटर-सेयरींग
वैज्ञानिकता से जल का बंटवारा है. यही कर्तव्य के तहत अधिकार है. फरक्का-बैरेज इस
सिद्धांत का हनन करनें वाला स्ट्रक्चर है. नदी के उद्गम स्थल का जल पैतृक-सम्पत्ति
सभी प्रान्तों में बराबर-बराबर है. प्रत्येक प्रान्त का भूजल उस प्रान्त का अपना
जल है. इसको समझना, नदी के सात्विक दान को समझना, यही है नदी-जल वितरण की संतुलंता.
गीता (2.62-63)
प्रतिष्ठित करती है कि
इन्द्रिय विषयों का चिंतन नहीं करनें वाला भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी
कामरूप क्रोध के तहत सम्मोह होते बुद्धिनाश से बचते स्थितप्रग्य हैं :
लगभग पाँच-साल के दौरान पार्लियामेंट में विभिन्न महत्वपूर्ण अध्यादेशों की एकमत से स्वीकृति करवाना, विभिन्न राष्ट्राध्यक्षों से देश की समस्या का निदान करवाते उनसे प्रसंशित होना. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रसंस्कृत सुरक्षात्मक कार्यों के लिए सम्मानित होना. विभिन्न देशों में रहने वाले भारतीयों का सम्मेलन बुलाकर उनसे भारतीयता का चिन्तन करवाना आदि हैं. हमारे देश के प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र-मोदी जी का दग्ध-कामाग्नि और विनष्ट हुआ सम्मोह और प्रखर-स्मृति का द्योतक, स्थितप्रग्य होने का प्रमाण है.