पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो में भक्त्या प्रयच्छति ।। तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः ।। गीता : 9.26 ।।
श्लोक का हिन्दी अर्थ :
यदि कोई प्रेम और भक्ति के साथ मुझे पत्र, पुष्प, फल या जल प्रदान करता है तो मैं उसे सगुण रूप से प्रकट हो कर स्वीकार करता हूँ.
श्लोक की वैज्ञानिकता :
भक्त्या प्रयच्छति, पूर्ण एकाग्रता कोशिका की सरल संघनित, दृढ़ व्यवस्था से किसी खास बिंदु पर शक्ति प्रवाह करना होता है. इस स्थिति में शक्ति प्रवाह से विभिन्न दिशाओं की तरंगें समाप्त हो जाती है. यही है प्रयतात्मनः निष्काम-शुद्ध बुद्धि. इस प्रषर-पूर्ण आत्म संयमित बुद्धि में, यदि पत्र-पुष्प, फल, जल आदि ब्रह्म के जिस रूप को समर्पित उस रूप से साथ आत्मीय सम्बन्ध. उस ब्रह्म को सगुण रूप से प्रकट होकर अर्पित पदार्थों को प्रोत्साहित कर उसे ग्रहण करना है. यही है भक्ति विज्ञान से पदार्थ को शक्ति में रूपांतरित करने की तकनीक. महान भक्त और तपस्वी, तुलसीदास, सूरदास, रैदास, किनाराम आदि अनेकों ने इस कलिकाल में भक्ति विज्ञान की तकनीक से उस अनन्त शक्ति का शरीर रूपी पदार्थ में परिवर्तित कर के दिखाया. यही है, तुम्हारे जीवन की सार्थकता के नाप का तराजू.
गंगा कहती है :
देखो, ताल-मेल समस्त सूक्ष्म और वृहत पदार्थों एवं जीवों के शक्ति पूर्ण शांति जीवन की आधारशिला है. मेरे शरीर के विभिन्न अंगो के पदार्थों और इनकी सजावट मेरे शक्ति का मूलाधार है. इनके साथ ताल-मेल रखना, मेरी पूजा करना है. विभिन्न बाँधों के निर्माण में सेडीमेन्ट्री लूज उच्च ढाल के चट्टान पर जितना ऊँचा-बाँध उसी अनुपात में लैंडस्लाइड यह ताल-मेल को स्थापित नहीं करता है, यही कारण है, 260.5 मी. टीहरी डैम से लगभग 750 मेगावाट जबकि चीन के TGP डैम की 175 मी. ऊँचाई की बाँध से 18 हजार मेगावॉट बिजली पैदा होती है. इसी तरह, भीमगोड़ा-नरौरा-फरक्का बाँधों के कार्यों को हमारी प्रकृति से तालमेल कर सुधार लाने की आवश्यकता है. यही है श्रद्धा प्रेमाभक्ति से आज के समय में हमारी पूजा करना. यही होगी “पत्रं-पुष्पं-फलं-तोयं” से गंगा की पूजा. यह पूजा विद्यापति, पंडितराज जग्गनाथ आदि ने “भक्ति योग तकनीक से की थी.