आशापाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः । ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसज्चयान ।। गीता : 16.12 ।।
श्लोक का हिन्दी
अर्थ :
वह मानव लाखों इच्छाओं के जाल में
बँधकर, काम और क्रोध में लीन होकर इन्द्रिय तृप्ति के
लिए अवैध ढंग से धन संग्रह करने का प्रयास करता हैं.
श्लोक की वैज्ञानिकता
:
लाखों इच्छाएं विभिन्न आवृतियों आयामों एवं अन्य बदलती तारंगिक गुणों से इन्द्रियों से निस्तारित होती शक्ति तरंगें हैं. ये कोशिकाओं को ऐंठती-निचोड़ती कंपकंपाती हुई निस्तारित होती रहती हैं. प्रतिक्रिया स्वरूप इस सत्यानाशी आन्तरिक कम्पन को शांत करने के लिये उसे अस्वभाविक रूप से धनोपार्जन के लिये शक्ति का व्यय करना पड़ता है. यह उसके कोशिकाओं को और ज्यादा आंदोलित करता है. इस तरह निस्तारित परिणामी शक्ति प्रवाह का वह न तो आयाम का और न ही दिशा का आंकलन कर पाता है. अतः इन्द्रिय तृप्ति के लिए वह हाथ-पाँव तो जरूर मारता है, पर परिणाम उसके हाथ में नहीं है. इस तरह इस प्रकार का मनुष्य काम क्रोध परायण रहता है.
गंगा कहती है :
सैकड़ों आशा की फाँसियों से तथा कर्मों के परिणामों से लाभ हानि ही मनुष्य को क्रमशः काम-क्रोध या क्या-कितने दिन के लिये खोया-पाया इसका आँकलन प्रस्तुत करता है. तुम्हारे काम की पराकाष्ठा मेरे सतही जल के दोहन से परिभाषित होती है. यह तुम्हारा काम है. तुम्हारे इस कार्य से मेरे भूजल स्तर का गिरना ही मेरा क्रोध है. अतः सतही और भूजल स्तर में जितना ज्यादा अन्तर होगा अर्थात फ्री सिपेज हाइट जितना ज्यादा होगा, उतना ही तुम्हारा अन्याय पूर्ण विषय भोग होगा और उतने ही तुम कामी, लोभी और स्वार्थी बनोगे. अतः हममें न्यूनतम कितना प्रवाह अत्यावश्यक है, इसको तुमने कभी समझने का प्रयास किया ही नहीं और अभी भी नहीं कर रहे हो. यह नदी का न्यूनतम प्रवाह वह है जिस प्रवाह पर फ्री सीपेज हाइट शून्य हो. यही संकलन सिद्धांत तुम्हारे दिमाग में नहीं है, जिसका परिणाम दोहन मात्र है. मानवीय तुलना में , यह इस प्रकार होता है जैसे निरोग आदमी से बल्ड को तब तक निकालना, जब तक वह मर न जाए. यही है मेरी दुर्दशा का स्तर, यही है, तुम्हारा अन्यायपूर्वक धनादि पदार्थों को संग्रह करने की चेष्टा.
देश की हजारों नदियों के सूखने का कारण :
नदियों के सतही जल के अतिरिक्त इनके भूजल का दोहन और शोषण उस निरंतरता से उस स्तर तक हो गया है, जिस कारण इनके आधारभूत जल से भूजल बेस फ्लो का आना ही बंद हो गया. इनके दोहन से अपने विषय भोग की यह पराकाष्ठा है और इस कारण ये स्थायी रूप से निष्प्राण बिना जल वेग के हो गये हैं. यही हैं, वाराणसी नाम की आधार शिला सुखी और शुद्ध जल के लिए तड़पती असि और वरूणा. यही है देश की हजारों नदियों के सूखने का इनके शोषण का कारण और यही है, वाराणसी के 30-40 % से ज्यादा घरों में बोरवेल से भूजल का आना जल निगम से आपूर्ति किये जा रहे जल का उपयोग का नहीं किया जाना. अत: असि और वरूणा के सूखने का कारण इन नदियों के बेसिन से अत्यधिक भूजल बेस फ्लो का दोहन है. इस भूजल समस्या की मौलिकता यह है कि असि-बरूणा के मृत प्रायः होना और गंगा में इस प्रवाह का न्यूनाधिक होते जाना तथा अनियंत्रित सैकड़ों आशा के फाँसियों से जकड़े हुए मनुष्य के आधारभूत उद्देश्य विषय भोग का होना. अतः खेतों की मेड़बन्दी अभियान का महा शंख फूंको. इसे फूंके जाने की जरुरी आवश्यकता आ पड़ी है. यह इन माताओं की रक्षा का नहीं अपनी रक्षा का अचूक बर्ह्मास्त्र है. इन ब्रह्म देवियों को प्रणाम है.